________________ महावीर के उपदेश : 127 .. .. :.7 : जीव-हिंसा अपनी हिंसा है, जीव-दया अपनी दया है / इसी दृष्टि को ले कर आत्मार्थी साधकों ने हिंसा का सर्वथा परित्याग किया है। भगवती अहिंसा भयाक्रान्त के लिए शरण - प्राप्ति की तरह हितकर है। संसार में जो कुछ भी श्रेष्ठ सुख, प्रभुता, सहज सुन्दरता, आरोग्य एवं सौभाग्य दिखाई देते हैं, वे सब अहिंसा के ही फल हैं। विश्व के किसी भी प्राणी की अवहेलना नहीं करनी चाहिए, और न निन्दा ही करनी चाहिए। ::11 : संसार में जैसे सुमेरु से ऊँची और , आकाश से विशाल कोई दूसरी चीज नहीं है, इसी प्रकार यह निश्चय समझो कि अखिल विश्व में अहिंसा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। जैसे तुझे दुःख अप्रिय है, इसी प्रकार संसार के सब जीवों को दु:ख अप्रिय है---ऐसा समझ कर सब प्राणियों के प्रति उपयोगपूर्वक आदर एवं आत्मवत् दया करो। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org