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________________ महावीर के उपदेश : ११९ कर्मवाद इस जगत में जो भी प्राणी हैं, वे अपने - संचित कर्मों के कारण ही संसार में भ्रमण करते हैं और स्वकृत कर्मों के अनुसार ही भिन्न - भिन्न योनियाँ पाते हैं। फल भोगे बिना उपार्जित कर्मों से प्राणी मुक्त नहीं होता। प्राणी अपने ही कृत - कर्मों से प्रतिकूल (दुःखरूप) फल पाता है। सब प्राणी अपने कर्मों के अनुसार पृथक-पृथक् योनियों में अवस्थित हैं । कर्मों की अधीनता के कारण अव्यक्त दुःख से दु:खित प्राणी जन्म, जरा और मरण से सदा भयभीत रहते हुए चार गति - रूप संसार - चक्र में भटकते हैं। : ४ : जैसे पापकर्मा चोर खात के मुह पर पकड़ा जा कर अपने कर्मों के कारण ही दुःख उठाता है, उसी तरह से इस लोक या परलोक में कर्मों के फल भोगने ही पड़ते हैं। फल भोगे बिना संचित कर्मों से छुटकारा नहीं हो सकता। आत्मा स्वयं अपने द्वारा ही कर्मों की उदीरणा करता है, स्वयं अपने द्वारा ही उसकी गर्हा-आलोचना करता है और अपने द्वारा ही कर्मों का संवर (आश्रव-निरोध) करता है। ___Jain Education International For Private & Personal Use Only ...www.jainelibrary.orget
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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