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१०८ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र--- जब तीनों पूर्ण हो जाते हैं, पूर्णता की दृष्टि से जब तीनों शुद्ध आत्म-चेतना के रूप में एकाकार एवं एकरस हो जाते हैं, एक सहज पूर्ण अद्वैतभाव प्रतिष्ठापित हो माता है, तब आत्मा परमात्मा हो जाता है। यह है जैन - दर्शन की साधना का चरम लक्ष्य । इसी भाव को लक्ष्य में रखते हुए कहा गया है
"कर्मबद्धो भवेज्जीवः, कर्ममुक्तस्तथा जिनः।"
मवाराम
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