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भक्तामर स्तोत्र
भावार्थ -हे त्रिभुवन के एकमात्र श्रृंगार ! शान्तरस की छवि वाले जिन मनोहर परमाणुओं से आपका शरीर निर्मित हुआ है, वे परमाणु भू-मण्डल पर वस उतने ही थे, अधिक नहीं। क्योंकि संसार में आपके समान अन्य किसी का सुन्दर रूप है ही नहीं। यदि अन्य परमाणु होते, तो दूसरा कोई सुन्दर भी रूप न बन जाता?
टिप्पणी यह उत्प्रेक्षा अलंकार की उड़ान है। संसार में सुन्दर पर. माणुओं की कमी नहीं हैं, परन्तु आचार्य तो भगवान् को अद्वितीय सुन्दर बताना चाहते हैं । इसलिए यह उदात्त कल्पना करते हैं, कि बस श्रेष्ठ परमाणु उतने ही थे, अधिक नहीं। यदि होते, तो आपके समान दूसरा भी कोई सुन्दर रूप न बन ही जाता।
वक्त्रं क्व ते सुरनरोरगनेत्रहारि, ___ निःशेष - निर्जित - जगत् - त्रितयोपमानम् । बिम्ब कलङ्क-मलिनं क्व निशाकरस्य,
यद् वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ।१३। अन्वयार्थ - (सुरनरोरगनेत्रहारि) देव, मनुष्य तथा नागेन्द्र के नेत्रों को हरण करनेवाला एवं (निःशेषनिर्जितजगत-त्रितयोपमानम्) जिसने तीनों जगत् की उपमाओं
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