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भक्तामर स्तोत्र
अन्वयार्थ- (अल्पश्रुतम्) मैं अल्पज्ञ हूं, अतएव (श्रुतवताम्) विद्वानों की, (परिहासधाम) हंसी के स्थानपात्र (माम्) मुझे (त्वद्भक्तिः एव) आपकी भक्ति ही (वलात्) जबर्दस्ती (मुखरीकुरुते) वाचाल कर रही है (किल) निश्चय से (मधौ) वसन्त-ऋतु में (कोकिल:) कोयल (यत्) जो (मधुरम् विरौति) मीठे शब्द करती है (तत् च) और वह ( आम्रचारुकलिका निकरैकहेतुः) आम की सुन्दर मंजरी के समूह के कारण ही करती है ।।६।।
भावार्थ-प्रभो ! मैं अल्पज्ञ हूँ। विद्वानों की हंसी का पात्र हैं। भला मैं आपकी स्तुति करना क्या जानू ? परन्तु क्या करू, आपको भक्ति ही मुझे जबर्दस्ती स्तुति करने के लिए मुलर अर्थात् वाचाल कर रही है।
कोयल दूसरी ऋतुओं में इतनी अच्छी तरह नहीं बोलती ! मधुमास--वसन्त के आने पर ही क्यों मधुर कूजन करती है ? आम की सुन्दर कलिकाओं का समह ही इसका एकमात्र कारण है।
टिप्पणी , बसन्त में आम पर लगे बौर को देखकर और खाकर कोयल का चिरकाल से रुधा हुआ कण्ठ अपने आप ही. रस-माधुरी
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