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प्रकाशकीय
राष्ट्रसन्त उपाध्याय श्री अमरसुनिजी द्वारा सम्पादित एवं अनुवादित वीर-स्तुति का यह चतुर्थ संस्करण जनता के कर-कमलों में समर्पित करते हुए हमें महान् हर्ष है । प्रस्तुत संस्करण उपाध्यायश्रीजी द्वारा रचित विक्रमाब्द १९८७ और विक्रमाब्द २००३ के दोनों पद्यानुवाद दे दिए गए हैं। कुछ पाठकों को पुराना अनुवाद पसंद था, तो कुछ को नवीन । अतः प्रस्तुत पुस्तक में दोनों को ही रख दिया गया है। पाठक अपनी रुचि के अनुसार, कोई-सा भी पढ़ सकते हैं। दूसरी विशेषता यह यह है कि प्रस्तुत संस्करण में उपाध्यायश्रीजी द्वारा चित महावीराष्टक स्तोत्र भी दे दिया गया है । आशा है, पाटक इससे अधिक से अधिक लाभ उठाएँगे।
ओमप्रकाश जैन
मन्त्री
सन्मति ज्ञान पीठ
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