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________________ वीर-स्तुति यदर्चाभावेन प्रमुदितमना दर्दुर इह, क्षणादासीत् स्वर्गी गुणगणसमृद्धः सुखनिधिः । लभन्ते सद्भक्ताः शिवसुखसमाजं किमु तदा ? महावीर स्वामी नयनपथगामी भवतु नः॥ जिन्हों की अर्चा से मुदित-मन हो दर्दुर कभी, हुआ था स्वर्गी तत्क्षण सुगुण-धारी अति सुखी। शिवश्री के भागी यदि सुजन हों तो अति कहाँ, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी सतत हों। भला जिनकी साधारण-सी स्तुति के प्रभाव से जब नन्दन मैंढक जैसे तुच्छ भक्त भी, क्षणभर में, प्रसन्न-चित्त होकर अनेकानेक सद्गुणों से समृद्ध, सुख के निधि स्वर्गवासी देवता बन जाते हैं, तब यदि भत्त-शिरोमणि मानव मोक्ष का अजर-अमर आनन्द प्राप्त कर लें, तो इसमें आश्चर्य ही किस बात का ? इस प्रकार परम दयालु भगवान महावीर स्वामी सर्वदा हमारे नयन-पथ पर विराजमान रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001420
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1981
Total Pages58
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & agam_related_other_literature
File Size2 MB
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