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वोर-स्तुति
: २ : अताम्र यच्चक्षुः कमल-युगलं स्पन्दरहितं, जनान कोपापायं प्रकटयति वाऽभ्यन्तरमपि । स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वाति विमला, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु नः।। जिन्होंकी नेत्राभा अचल, अरुणाई-रहित हो, सुझाती भत्तों को हृदयगत कोपादि-शमता । विशुद्धा सौम्या आकृति अमित ही भव्य लगती,
महावीर स्वामी नयन - पथ-गामी सतत हो।
जिनके लालिमा से रहित अचंचल नेत्र-कमल, दर्शक जनता को, अन्तर्हदय के क्रोधाभाव की अर्थात् समभाव की सूचना देते हैं, जिनकी ध्यानावस्थित प्रशान्त वीतराग-मुद्रा अतीव शुद्ध एवं पवित्र मालूम होती है, वे भगवान महावीर स्वामी सर्वदा हमारे नयन-पथ पर विराजमान रहें।
टिप्पणी-आंखों के लाल और चंचल होने में मनुष्य के मन का क्रोध ही कारण बनता है । अस्तु भगवान की आँखों का लाल और चंचल न होना सूचित करता था कि भगवान महावीर स्वामी क्रोध के आवेश से सर्वथा रहित हैं, पूर्णरूप से शान्त है। जब कारण ही नहीं, तो कार्य कैसा ? .
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