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___वीर-स्तुति से सव्वदंसी अभिभूय नाणी, निरामगंधे धिइमं ठियप्पा । अगुत्तरे सव्व-जगंसि विज्ज,
गंथा अतीते अभए अणाऊ ।।५।। वे सर्वदर्शी रिपुजयी सद्ज्ञान के आगार थे। निर्दोष चारित्री, अचल स्वस्थित परम अविकार थे। संसार में सबके शिरोमणि, तत्त्वज्ञानी ईश थे।
भय-मुक्त, आयुष के अबन्धक, ग्रन्थ-मुक्त, मुनीश थे ॥५॥ सर्वदर्शी सर्वज्ञानी जिन वने कलि जीत कर, पूर्ण-शुद्ध-चारित्र, आत्म-स्वभाव में रत धीर-वर । लोक में सब से अनुत्तर थे सुधी, अपरिग्रही, सर्वविध-भय-शून्य, आयुष्कर्म का वन्धन नहीं ॥५॥
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___ भगवान् महावीर त्रिकालवर्ती सब पदार्थों के ज्ञाता और द्रष्टा थे, काम-क्रोधादि अन्तरंग शत्रुओं को जीतकर केवल ज्ञानी बने थे, निर्दोष चारित्र का पालन करते थे, अटल वीर पुरुष थे, अपने आत्म स्वरूप में स्थिर भाव से लीन थे, अर्थात् निर्विकार थे, लोक में सबसे उत्कृष्ट अध्यात्म-विद्या के पारगामी थे, सब प्रकार से परिग्रह के त्यागी थे, निर्भय थे, सदा के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर अजर-अमर हो गए थे। उन्होंने पुनर्जन्म के लिए फिर आयुष का बन्ध नहीं किया था।
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