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________________ 16 जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन मतिज्ञान केवलज्ञान उपकार कैसे संभवित है ? जैसे ज्ञानादि चैतन्यरूप और अमूर्त होने पर भी मदिरा आदि भौतिक-मूर्त वस्तुओं द्वारा इनका उपघात होता है तथा घृत, दूध आदि पौष्टिक पदार्थों द्वारा इनका उपकार होता है वैसे ही आत्मा चेतन-अमूर्त होने पर भी भौतिक-मूर्त कर्म द्वारा उसका उपघात या उपकार होता है। आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादि है।8 २. अजीव : अजीव में पाँच द्रव्यों का समावेश हैं, यथा पुद्गल (Matter), धर्म, __ अधर्म, आकाश और काल। (१) पुद्गल - स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण ये पुद्गल द्रव्य के व्यावर्तक गुण हैं।39 पुद्गल के प्रत्येक परमाणु में ये चार गुण होते हैं । स्पर्श के आठ, रस के पाँच, गन्ध के दो और वर्ण के पाँच भेद हैं-इस प्रकार प्रमुख बीस भेद हैं। अणु में एक रस, एक वर्ण, एक गन्ध और दो स्पर्श होते हैं। उस में शीत और रुक्ष दो स्पर्श, या शीत और स्निग्ध दो स्पर्श, या उष्ण और रुक्ष दो स्पर्श, या उष्ण और स्निग्ध दो स्पर्श होते हैं । इस प्रकार प्रत्येक परमाणु या तो स्निग्ध होता है या तो रुक्ष होता है। स्निग्धता और रुक्षता की मात्रा अनन्त तक हो सकती है। स्निग्धता और रुक्षता की नियत मात्रावाले दो परमाणुओं का ही संयोजन होता है। डॉ. बी.एन. सील इस बारे में लिखते हैं : “A crude theory, of chemical combination, very crude but immensely suggestive, and possibly based on the observed electrification of smooth and rough surfaces as the result of rubbing.'' 42 परमाणु में स्निग्धता या रुक्षता की मात्राओं का न्यूनाधिक रूप में परिवर्तन स्वभावतः चलता रहता है और दो परमाणुओं में उनकी नियत मात्रा होने से परमाणुओं का संयोजन होकर स्कंध (aggregate) बनता है। इस सम्बन्ध में डॉ. ए. एन उपाध्ये कहते हैं : “'Thus the atomic aggregation is an automatic function resulting from the essential nature of atoms... The combinatory urge in atoms is due to their degrees of cohesiveness and aridness.'' 43 जैन परमाणुवाद की दूसरी ध्यानयोग्य बात यह है कि परमाणुओं में जातिभेद नहीं है। पृथ्वीजाति के परमाणुओं का अलग वर्ग, अप्जाति के परमाणुओं का अलग वर्ग, इत्यादि जैन नहीं मानते । उनके मतानुसार कोई भी परमाणु पृथ्वी, पानी, तेज और वायु का पर्याय (परिणाम, mode) धारण कर सकता है।44 परमाणु को देशव्याप्ति (extension) नहीं है। वह जितने देश में रहता है, उसे प्रदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001419
Book TitleJain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagin J Shah
PublisherJagruti Dilip Sheth Dr
Publication Year2000
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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