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________________ ८१ गा० २७-२६] सुत्तसमुक्त्तिणा 8 एत्तो पयडिहाणसंकमो । २०७. एत्तो उवरि पयडिट्ठाणसंकमो सप्पडिवक्खो सगंतोभाविदपयडिट्ठाणपडिग्गहापडिग्गहो परूवेयव्यो त्ति भणिदं होइ। * तत्थ पुव्वं गमणिज्जा सुत्तसमुकित्तणा । ६ २०८. तम्हि पयडिट्ठाणसंकमे परूविजमाणे पुव्वमेव तत्थ ताव पडिबद्धाणं गाहासुत्ताणं समुकित्तणा कायव्वा त्ति वुत्तं होइ । * तं जहा। $ २०९. सुगममेदं गाहासुत्तावयारावेक्खं पुच्छावकं । अट्ठावीस चउवीस सत्तरस सोलसेव पण्णरसा । एदे खल मोत्त णं सेसाणं संकमो होइ' ।। २७ !! सोलसग बारसंग वीसं वीसं तिगादिगधिगा य । एदे खलु मोत्तणं सेसाणि पडिग्गहा होति ॥ २८ ॥ छब्बीस सत्तवीसा य संकमोणियम चदुसु हाणेसु । वावीस पण्णरसगे एकारस ऊणवीसाए ॥२६॥ * अब इससे आगे प्रकृतिस्थानसंक्रमका अधिकार है। २०७. अब इससे आगे जिसमें प्रकृतिस्थानप्रतिग्रह और प्रकृतिस्थान-अप्रतिग्रहका कथन आ जाता है ऐसे प्रकृतिस्थानसंक्रमका अपने प्रतिपक्षके साथ कथन करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * उसमें सर्व प्रथम गाथासूत्रोंकी समुत्कीर्तना जाननी चाहिये । ___६ २०८. इस प्रकृतिस्थानसंक्रमका कथन करते समय सर्व प्रथम प्रकृतिस्थानसे सम्बन्ध रखनेवाले गाथासूत्रोंकी समुत्कीर्तना करनी चाहिये यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है। * यथा२०९. गाथासूत्रों के अवतार की अपेक्षा रखनेवाला यह पृच्छासूत्र सुगम है। अट्ठाईस, चौबीस, सत्रह, सोलह और पन्द्रह इन पाँच स्थानोंके सिवा शेष तेईस स्थानोंका संक्रम होता है ॥२७॥ सोलह, बारह, आठ, बीस और तीन अधिक आदि बीस अर्थात् तेईस, चौबीस, पच्चीस. छब्बीस, सत्ताईस और अट्ठाईस इन दस स्थानोंके सिवा शेष अठारह प्रतिग्रहस्थान होते हैं ।।२८॥ छब्बीस और सत्ताईस संक्रमस्थानोंका बाईस, पन्द्रह, ग्यारह ओर उन्नीस इन चार प्रतिग्रहस्थानोंमें नियमसे संक्रम होता है । ॥२६॥ १. कर्मप्रकृति संक्रम गा० १० । २. कर्मप्रकृति संक्रम गा० ११ । ३. कर्मब्रकृति संक्रम गा० १२ । ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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