SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा ०५८] उत्तरपयडिढिदिवड्डिसंकमे अंतरं ४१६ समया ! मणुसपज्ज०-मणुसिणीसु छव्वीसं पयडीणं असंखे भागहाणि-अवढि० सम्म०सम्मामि० असंखे०भागहाणी सम्बद्धा । सेसपदसंका० जह० एयस०, उक्क० संखेजा समया। आणदादि जाव णवगेवजा ति विहत्तिभंगो। णवरि सम्म०-सम्मामि० संखेजगुणहाणी असंखे०गुणहाणी च णत्थि। अणुदिसादि अवराजिदा ति अट्ठावीसं पयडीणं असंखे०भागहाणी सव्वद्धा। सेसपदागि जह० एयस०, उक० आवलियाए असंखे०भागो। सव्वढे अट्ठावीसं पयडीणं असंखे०भागहाणी सव्वद्धा। सेसपदा० जह० एयसमओ, उक्क० संखेजा समया। एवं जाव० । ___१८९६. अंतराणुग० दुविहो णिद्दे सो-ओघादेस० । ओघो विहत्तिभंगो । णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्तव्व० तिण्हं संजल० पुरिसवेद० असंखे० गुणवड्डी० जह० एयस०, उक्क० वासपुधत्तं । सम्म०-सम्मामि० असंखे०गुणहाणी० जह० एयसमओ, उक्क० छम्मासा । सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणसअपज्ज०-देवा जाव सहस्सारे त्ति विहत्तिभंगो। णवरि सम्म०-सम्मामि० असंखे० गुणहाणी णत्थि । मणुस०२ विहत्तिभंगो। णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त० सम्म०-सम्मामि० असंखे०गुणहाणी ओघं । एवं मणुसिणीसु । णवरि खवयपयडीणं वासपुधत्तं । आणदादि णवगेवजा त्ति विहत्तिभंगो। छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदके संक्रामकोका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिके संक्रामकोंका काल सर्वदा है। शेष पदोंके सक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। आनतसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि नहीं है । अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवों अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिके संक्रामकोंका काल सर्वदा है। शेष पदोंके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सर्वार्थसिद्धिमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिके संक्रामकोंका काल सर्वदा है। शेष पदोंके संक्रामकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। ६८६६. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके प्रवक्तव्यपदके संक्रामकोंका तथा तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी असंख्यातगुणवृद्धिके संक्रामकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कुष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिके संक्रामकोका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। सब नारकी, सब तिर्यश्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और सहस्रार कल्प तकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। मनुष्यद्विकमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके प्रवक्तव्यपदके संक्रामकोंका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिके संक्रामकोंका अन्तरकाल ओघके समान है। इसी प्रकार मनुज्यिनियोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि क्षपक प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। आनतसे लेकर नौ अवेयक तकके देवोंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy