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________________ ४१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ ६८९४. पोसणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण याओधो विहत्तिभंगो। णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त० तिण्हं संजल० पुरिसवेद० असंखे गुणवड्डी सम्म०-सम्मामि० असंखेगुणहाणी खेत्तं । सव्वणेरइय०-सव्वतिरिक्ख०-मणुसअपज०देवा जाव सहस्सार त्ति हिदिविहत्तिभंगो। णवरि सम्म०-सम्मामि० असंखे०गुणहाणी णत्थि । अण्णं च पंचिंदियतिरिक्खअपज-मणुसअपज० सम्म०-सम्मामि. संखेभागहाणी संखे गुणहाणी खेत्तभंगो। मणुस०३ विहत्तिभंगो । आणदादि अच्चुदा त्ति विहत्तिभंगो। णवरि सम्म०-सम्मामि० संखे०गुणहाणी असंखे० गुणहाणी पत्थि । उवरि खेत्तभंगो । एवं जाव० । ___$८९५. कालाणुगमेण दुविहो णिदे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघो विहत्तिभंगो। णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त० तिण्हं संजल० पुरिसवेद० असंखे०गुणवड्डी० सम्म०-सम्मामि० असंखे०गुणहाणी० जह० एयसमओ, उक्क० संखेजा समया। सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणुसअपज ०-देवा जाव सहस्सार त्ति विहत्तिभंगो। णवरि सम्म०-सम्मामि. असंखे०गुणहाणी पत्थि। मणुसा० विहत्तिभंगो । णवरि बारसक :णवणोक० अवत्त० सम्म०-सम्मामि० असंखे गुणहा० जह० एयसमओ, उक्क० संखेजा १८६४. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । श्रोधका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यपदके संक्रामक जीवोंका, तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी असंख्यातगुणवृद्धिके संक्रामक जीवोंका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और सहस्रार कल्प तकके. देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। इतनी और विशेषता है कि पञ्च न्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्र और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका भंग क्षेत्रके समान है। मनुष्यत्रिकमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। प्रानतसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्तकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि नहीं है। ऊपर क्षेत्रके समान भंग है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। ८६५. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यपदके संक्रामकोंका, तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी असंख्यातगुणवृद्धिके संक्रामकोका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। सब नारकी, सब तियश्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और सहस्त्रार कल्प तकके देवों में स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि नहीं है । मनुष्योंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्य पदके संक्रामकोंका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिके संक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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