________________
४१६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ अस्थि । सेसपदाणि भयणिजाणि । सम्म०-सम्मामि० विहत्तिभंगो । आणदादि णवगेवजा त्ति विहत्तिभंगो । णवरि सम्म०-सम्मामि० संखे०गुण० असंखे०गुणहाणी णत्थि । अणुद्दिसादि सवट्ठा त्ति विहत्तिभंगो। णवरि सम्म० संखे गुणहाणी' णथि । एवं जाव०।
८९१. भागाभागाणुगमेण दुविहो गिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण छब्बीसं पयडीणं असंखे०भागवड्डी असंखे०भागो । अवट्ठि० संखे भागो। असंखे०भागहाणी संखे०भागा । सेसपदाणि अणंतिमभागो। सम्म०-सम्मामि० विहत्तिभंगो। सव्वणेरइय०-सव्वतिरिक्ख०-मणुसअपज०-देवा जाव सहस्सार त्ति विहत्तिभंगो । णवरि सम्म०-सम्मामि० असंखे०गुणहाणी णत्थि । मणुसा० विहत्तिभंगो। णवरि बारसक०णवणोक० अवत्त०संका. असंखे०भागो । एवं मणुसपज्ज०-मणुसिणी० । णवरि संखे०पडिभागो कायव्यो । आणदादि णवगेवजा त्ति विहत्तिभंगो। णवरि सम्म०-सम्मामि० संखे०गुणहाणी असंखे०गुणहाणी च णत्थि । अणुद्दिसादि सव्वट्ठा ति विहत्तिभंगो । णवरि सम्म० संखेन्गुणहाणी णत्थि । एवं जाव० ।
६.८९२. परिमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओषो सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। आनतसे लेकर नौ प्रवेयक तकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि नहीं है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये ।
६१. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। ओघसे छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अवस्थितपदवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। तथा शेष पदवाले जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। सब नारकी, सब तिर्यश्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और सहस्त्रार कल्प तकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व
और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। मनुष्योंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्य पदके संक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें प्रतिभागका प्रमाण संख्यात करना चाहिए। आनतसे लेकर नौ अवेयक तकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी संख्यातगुणहानि नहीं है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
१८६२. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोधनिर्देश और आदेश१. ता० प्रतौ सम्म० सम्मामि संखेगुणहाणी इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org