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________________ गा० ५८] उत्तरपयडिट्ठिदिभुजगारसंकमे णाणाजीवेहिं अंतर १८१ ७९५. जहण्णेणेयसमओ, उक्कस्सेणावलियाए असंखे०भागो इच्चैदेण मेदाभावादो । एवमोघपरूवणा सुत्तणिबद्धा गया । ६७९६. एत्तो देसामासयभावेणेदेण सुत्तपबंधेण सूचिदादेसपरूवणाए विहित्तिभंगो। णवरि मणुसतिए बारसक०-णवणोक० अवत्त० जह० एयस०, उक्क० संखेज्जा समया । *णाणाजीवेहि अंतरं । ७९७. णाणाजीवसंबंधिकालणिदेसाणंतरं तदंतरमणुवण्णइस्सामो ति पइलाणिद्देसमेदेण सुत्तेण काऊण तविहासणट्ठमुत्तरसुत्तं भणइ * मिच्छत्तस्स भुजगार-अप्पदर-अवहिदसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि? ७९८. सुगमं । 8 णथि अंतरं। ६७९९. सुगमं । * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार-अवत्तव्वसंकामयंतरं केवचिर कालादो होदि? 5. ८००. सुगमं । ॐ जहणणेणेयसमो। ६७६५. क्योंकि जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है इससे यहाँ कोई भेद नहीं है । इस प्रकार सूत्रमें निबद्ध ओघप्ररूपणा समाप्त हुई। ६७६६. आगे देशामर्षकरूपसे इस सूत्रप्रबन्ध द्वारा सूचित आदेशकी प्ररूपणा करने पर स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकमें बारह कषायों और नौ नौकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। * अब नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरका अधिकार है। ६७६७. नाना जीवसम्बन्धी कालका निर्देश करनेके बाद उसके अन्तरको बतलाते हैं इस प्रकार इस सूत्र द्वारा प्रतिज्ञाका निर्देश करके उस अन्तरका व्याख्यान करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * मिथ्यात्वके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितसंक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ? ७६८. यह सूत्र सुगम है। * अन्तरकाल नहीं है। ६७६६. यह सत्र सुगम है। * सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अवक्तव्य संक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ? ६८००. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तरकाल एक समय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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