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________________ ३८० कालादो होंति ? * अप्पदरसं कामया सव्वद्धा 1 $ ७९०. कुदो ? मिच्छाइट्ठि सम्माइट्ठीणं पवाहस्स तदप्पयरसंकामयस्स तिसु वि कालेसु निरंतरमवाणोवलंभादो । * सेसाणं कम्माणं भुजगार - अप्पयर अवट्ठिदसंकामया केवचिरं ६ ७९१. सुगमं । जयधवलास हिदे कसाय पाहुडे * सव्वद्धा । ९ ७९२. सव्वकालमविच्छिण्णसरूवेणेदेसिं संताणस्स समवट्ठाणादो | [ बंधगो ६ * अवत्तत्र्वसंकामया केवचिरं कालादो होंति । $ ७९३. सुगमं । * जहणणेणेयसमत्रो, उक्कस्सेण संखेज्जा समया । $ ७९४. उवसामणादो परिवदिदाणमणणुसंधिदसंताणाणमेत्थ जहण्णकालसंभवो, सिं चैव संखेजवार मणुसंघिदसंताणाणमवट्ठाणकालो उक्क० संखेजसमय मेत्तो घेत्तव्वो । एदेण सुतेणाणताणुबंधीणं पि अवत्तव्वसंकामयाणमुक्कस्सकाले संखेज समयमेत्ते अइप्पसत्ते तत्थ विसेससंभवमाह - * वरि अताणुबंधीणमवत्तव्वसंकामयाणं सम्मत्तभंगो । * अल्पतरसंक्रामकोंका काल सर्वदा है । $ ७९०. क्योंकि मिध्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टियोंमें इन कर्मोंके अल्पतरसंक्रामकका प्रवाह तीनों ही कालोंमें निरन्तर पाया जाता है । * शेष कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित संक्रामकोंका कितना काल है ? ६ ७६१. यह सूत्र सुगम है । * सर्वदा है $ ७६२. क्योंकि सर्वदा अविच्छिन्नरूपसे इनकी सन्तान उपलब्ध होती है । * अवक्तव्य संक्रामकका कितना काल है ? Jain Education International ९७६३. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है 1 ६ ७६४. क्योंकि जिनकी सन्तान् विच्छिन्न हो गई है ऐसे उपशमश्रेणिसे गिरे हुए जीवोंका यहाँ पर जघन्य काल सम्भव है । तथा संख्यात बार मिली हुई सन्तानवाले उन्हीं जीवोंका संख्यात समयमात्र उत्कृष्ट अवस्थानकाल यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए। इस सूत्र से अनन्तानुबन्धियों के भी अवक्तव्य संक्रामकका उत्कृष्ट काल संख्यात समयमात्र प्राप्त होने पर वहाँ पर जो विशेषता सम्भव है उसका निर्देश करते हैं * किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धियोंके अवक्तव्य संक्रामकोंका भंग सम्यक्त्वके समान है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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