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________________ ३१३ गा०५८ ] उत्तरपयडिट्ठिदिसंकमे सामित्तं * सम्मत्तस्स जहएणहिदिसंकमो कस्स ? ६३३. सुगम । 8 समयाहियावलियमक्खीणदसणमोहणीयस्स । ६६३४. समयाहियावलियाए अक्खीणदंसणमोहणीयं जस्स सो समयाहियावलियअक्खीणदसणमोहणीओ । तस्स पयदजहण्णसामित्तं होइ त्ति सुत्तत्थसंबंधो। सेसं सुगमं । 8 सम्मामिच्छत्तस्स जहएणहिदिसंकमो कस्स ? $ ६३५. पुच्छासुत्तमेदं सुगम। ® अपच्छिमहिदिखंडयं चरिमसमयसंछुहमाणयस्स तस्स जहएणयं । ६ ६३६. एदस्स सुत्तस्स वक्खाणे कीरमाणे जहा मिच्छत्तजहण्णट्ठिदिसं० सामित्तसुत्तस्स वक्खाणं कयं तहा कायव्वं, दसणमोहक्खवणाचरिमफालीए सामित्तविहाणं पडि तत्तो एदस्स विसेसाणुवलंभादो । * अणंताणुबंधीणं जहएणहिदिसंकमो कस्स ? ६६३७. सुगमं । ॐ विसंजोएंतस्स तेसिं चेव अपच्छिमहिदिखंडयं चरिमसमयसंकामयस्स। * सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होताmmmmmmmmmm ६६३३. यह सूत्र सुगम है।। * जिसके दर्शनमोहनीयका क्षय होनेमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष है उसके सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है। ६६३४. जिसके :दर्शनमोहनीयका क्षय होनेमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष है वह समयाधिकावलिअक्षीणदर्शनमोहनीय है। उसके प्रकृत जघन्य स्वामित्व होता है यह इस सूत्रका तात्पर्य है । शेष कथन सुगम है।। * सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? ६६३५. यह पृच्छासूत्र सुगम है। * जो अन्तिम स्थितिकाण्डकका उसके अन्तिम समयमें संक्रम कर रहा है उसके सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है। ६६३६. इस सूत्रका व्याख्यान करनेपर जिस प्रकार मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिसंक्रमके स्वामित्वविषयक सूत्रका व्याख्यान किया है उसी प्रकार करना चाहिये, क्योंकि वहाँ जो दर्शनमोहनीयकी क्षपणाकी अपेक्षा अन्तिम फालिका पतन होते समय जघन्य स्वामित्वका विधान किया है इसकी अपेक्षा उससे इसमें कोई विशेषता नहीं पाई जाती। 5* अनन्तानुबन्धियोंका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है। ६६३७. यह सूत्र सुगम है। * जो विसंयोजना करनेवाला जीव अनन्तानुबन्धियोंके अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समयमें संक्रम कर रहा है उसके अनन्तानुबन्धियोंका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है । ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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