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________________ गा० ५८] हिदिसंकमे अप्पाबहुअं २८६ केत्तियमेत्तेण ? आवलियमेत्तेण । एवं चदुसु गदीसु । एवं जाव० । $ ५८१. जहण्णए पयदं। दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेसेण य । तत्थोघेण जहण्णओ हिदिसंकमो थोवो, एयणिसेयपमाणत्तादो। जट्ठिदी असंखे०गुणा, समयाहियावलियपमाणत्तादो। एवं मणुसतिए। आदेसेण णेरइय० सव्वत्थोवो जहट्ठिदिसंकमो । जट्ठिदिसंकमो विसेसाहिओ । एवं सव्वासु गईसु । एवं जाव० । ___६५८२. जीवप्पाबहुअं दुविहं जहण्णुक्क ट्ठिदिसंकामयविसयभेदेण । उकस्सए ताव पयदं । दुविहो णिद्दे सो--ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण उक्क० ट्ठिदिसंका० थोवा । अणु० अणंतगुणा । एवं तिरिक्खोघे । आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० कितना विशेष अधिक है ? एक आवलिप्रमाण अधिक है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिये । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। विशेषार्थ-मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होनेपर बन्धावलिके बाद उदयावलिप्रमाण निषकोंको छोड़कर शेषका संक्रम होता है। इसलिये उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमसे यत्स्थिति एक अवलिप्रमाग अधिक प्राप्त होती है। यहाँ संक्रम दो श्रावलि कम उत्कृष्ट स्थितिका हुआ है किन्तु यस्थिति एक आवलि कम उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण पाई जाती है । इसीसे प्रकृतमें उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमसे यस्थितिको एक प्रावलि अधिक बतलाया है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें यह अल्पबहुत्व जानना चाहिये । आगे अनाहारक मार्गणा तक भी इसका इसी प्रकार यथायोग्य विचार करके कथन करना चाहिये। ५८१. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा जघन्य स्थितिसंक्रम स्तोक है, क्योंकि उसका प्रमाण एक निषेक है । उससे यत्स्थिति असंख्यातगुणी है, क्यों कि उसका प्रमाण एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिये। आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें जघन्य स्थितिसंक्रम सबसे स्तोक है । उससे यत्स्थिति विशेष अधिक है। इसी प्रकार सब गतियोंमें जानना चाहिये । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। विशेषार्थ-क्षपक जीवके सूक्ष्मसम्परायका एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण काल शेष रह जाने पर जघन्य स्थितिसंक्रम प्राप्त होता है। यहाँ जघन्य स्थितिसंक्रमका प्रमाण एक निषेक है और यस्थितिका प्रमाण एक समय अधिक एक आवलि है। इसीसे प्रकृतमें जघन्य स्थितिसंक्रमसे यस्थिति असंख्यातगुणी बतलाई है। यह अल्पबहुत्व मनुष्यत्रिकमें घटित हो जाता है, इसलिये उनमें इस अल्पबहुत्वको ओघके समान बतलाया है । तथा नारकी आदि शेष मार्गणाओंमें जघन्य स्थितिसंक्रमसे यस्थिति एक आवलि अधिक होती है यह स्पष्ट ही है। इसीसे वहाँ जघन्य स्थितिसंक्रमसे यस्थितिको विशेष अधिक बतलाया है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक यथायोग्य अल्पबहुत्वको जान लेना चाहिये । ५८२. जीवअल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य स्थितिके संक्रामकोंसे सम्बन्ध रखनेवाला और उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंसे सम्बन्ध रखनेवाला । सर्वप्रथम उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव थोड़े हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीत अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार सामान्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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