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________________ गा० ५८] एयजीवेण कालो २६७ ___५४७. कालाणुगमेण दुविहो णिद्देसो जहण्णुकस्सभेएण । तत्थुक्कस्से ताव पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० डिदिसं० केव० ? जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । अणुक्क० द्विदिसं० जह० अंतोमु०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । ५४८. आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० द्विदिसं० ओघभंगो । अणुक्क० जह० एयसमओ, उक० तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवं सव्वणेरइय-तिरिक्ख०-पंचिंदियतिरिक्खतिए३ मणुसतिय३-देवा भवणादि जाव सहस्सार त्ति । णवरि अणु० उक्क० सगहिदी। पंचिं०तिरि०अपज०-मणुसअपज० मोह० उक० द्विदिसं० जह० उक्क० एयसमओ । अणु० जह० खुद्दा० समयूणं, उक० अंतोमु० । आणदादि जाव सव्वढे त्ति मोह० उक्क० द्विदिसं० जहण्णुक्क० एयस० । अणु० जह० जहण्णट्टिदी समयूणा, उक्क० उक० द्विदी संपुण्णा। एवं जाव० । स्थितिविभक्तिवालेके ही जघन्य स्थितिसक्रमका स्वामित्व प्राप्त होता है, इसलिए इन मार्गणाओंमें जघन्य स्थितिसंक्रमका स्वामित्व जघन्य स्थितिविभक्तिके स्वामित्वके समान कहा है। गति मार्गणामें जिस प्रकार जघन्य स्वामित्वका निर्देश किया है उसी प्रकार वह अनाहारक मार्गणा तक यथायोग्य घटित कर प्राप्त किया जा सकता है, इसलिये उसका अलगसे व.थन न करके संकेतमात्र कर दिया है। ६५४७. कालानुगमकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे निर्देश दो प्रकारका है । उनमेंसे उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश आदेशनिर्देश । ओघकी अपेक्षा मोहनीयके उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। विशेषार्थ-मोहनीयकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका काल उक्त प्रमाण होनेसे यहाँ उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका भी काल उक्त प्रमाण बतलाया है। ४४८. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका काल ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। इसी प्रकार सब नारकी, तिर्यश्च, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, मनुष्यत्रिक, देव और भवनवासी देवोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीयके उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका जघन्य काल एक समय कम जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल पूरी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा • तक जानना चाहिये। विशेषार्थ-जो ओघसे उत्कृष्ट स्थिति संक्रम और उसका काल बतलाया है । उसका नरकमें पाया जाना सम्भव है इसलिये नारकियोंमें भी उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका काल ओघके समान कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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