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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ $ २९. संपहि पयदकम्मदव्वसंकमसरूवपरूवणहमुत्तरसुत्तं भणइ * कम्मसंकमो चउव्विहो। तं जहा-पयडिसंकमो हिदिसंकमो अणुभागसंकमो पदेससंकमो चेदि । ३०. मिच्छत्तादिकजजणणक्खमस्स पोग्गलक्खंधस्स कम्मववएसो। तस्स संकमो कम्मत्तापरिच्चाएण सहावंतरसंकंती । सो पुण दबट्टियणयावलंबणेणेगत्तमावण्णो पज्जवट्ठियणयावलंबणेण चउप्पयारो होइ पयडिसंकमादिभेएण । तत्थ पयडीए पयडिअंतरेसु संकमो पयडिसंकमो ति भण्णइ, जहा कोहपयडीए माणादिसु संकमो त्ति । एवं सेसाणं पि वत्तव्वं । एसो चउप्पयारो कम्मसंकमो एत्थ पयदो। तत्थ वि मोहणिजकम्मसंबंधिणा संकमचउक्केण पयदं, अण्णेसिमेत्थाहियाराभावादो। एदेणेदस्स अत्थाहियारपरूवणदुवारेणाणुगमो परूविदो। को अणुगमो णाम ? अनुगम्यतेऽनेन प्रकृतोऽधिकार इत्यनुगमः । प्रकृते वस्तुन्यवान्तराणामर्थाधिकाराणां निर्गमें इति यावत् । एवमेदस्स संकममहाहियारस्स उवकमादीहि चउहि पयारेहि अहियारो परूविदो । संकमस्सेव सेसचोद्दसत्थाहियाराणं पि पुध पुध उवकमादिपरूवणा किण्ण परूविजदे ? ण, एदस्स मज्झदीवयभावेण ताणं पि तस्सिद्धीए तदपरूवणादो । २९. अब प्रकरण प्राप्त कर्मद्रव्यसंक्रमका स्वरूप बतलाने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं * कर्मनोआगमद्रव्यसंक्रम चार प्रकारका है। यथा-प्रकृतिसंक्रम, स्थितिसंक्रम, अनुभागसंक्रम और प्रदेशसंक्रम । ६३०. जो पुद्गलस्कन्ध मिथ्यात्व आदि कार्यके उत्पन्न करने में समर्थ हैं वह कर्म कहलाता है। उसका अपनी कर्मरूप अवस्थाका त्याग किये बिना अन्य स्वभावरूपसे संक्रमण करना कर्मसंक्रम कहलाता है। वह यद्यपि द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे एक प्रकारका है तथापि पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे वह प्रकृतिसंक्रम आदिके भेदसे चार प्रकारका है। इनमेंसे एक प्रकृतिका दूसरी प्रकृतियोंमें संक्रम होना प्रकृतिसंक्रम कहलाता है। जैसे क्रोध प्रकृतिका मानादिकमें संक्रमण होना प्रकृतिसंक्रम है। इसी प्रकार शेष संक्रमोंके विषयमें भी कथन करना चाहिये । यह चार प्रकारका कर्मसंक्रम यहाँ पर प्रकृत है। उसमें भी मोहनीयकर्मसम्बन्धी चार संक्रमोंका यहाँ प्रकरण है, क्यों कि दूसरे कर्मोंका यहाँ पर अधिकार नहीं है। इस प्रकार यहाँ पर जो इसके अधिकारोंका कथन किया है सो इससे इसके अनुगमका कथन कर दिया गया ऐसा जानना चाहिये। शंका-अनुगम किसे कहते हैं ? समाधान—जिससे प्रकृत अधिकारका ज्ञान होता है उसे अनुगम कहते हैं। इससे प्रकृत वस्तुमें अवान्तर अधिकारों का पूरा ज्ञान हो जाता है यह इसका तात्पर्य है । इस प्रकार इस क्रम महाधिकारका उपक्रम आदि चार प्रकारसे अधिकार कहा । __ शंका-जिस प्रकार संक्रमकी उपक्रम आदि रूपसे प्ररूपणा की है उसी प्रकार शेष चौदह अर्थाधिकारोंकी भी पृथक् पृथक् उपक्रम आदिरूपसे प्ररूपणा क्यों नहीं की? समाधान--नहीं, क्यों कि मध्यदीपकरूपसे यहाँ इसका उल्लेख किया है। इससे १. प्रतिषु-कारान्निर्गम इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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