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________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ असंखेञ्जगुणा । २७ संक्राम० असंखे० गुणा । २५ संका० असंखेगुणा० । एवं पढमाए सहस्सार ति । विदियादि जाव सत्तमा असंखे० गुणा । उवरि णिरओघो । एवं २२८ पंचिदियतिरिक्खदुगं [ देवा ] सोहम्मादि जाव त्ति सव्वत्थोवा २१ संका० । २६ संका० जोणिणी -‍ -भवण० - वाण० - जोदिसिया चि । ९ ४६५. तिरिक्खाणं णारयभंगो । णवरि २५ संका० अनंतगुणा । पंचि०तिरिक्खअपजत्त- मणुसअपज्ज० सव्वत्थोवा २६ संका० । २७ संका० असंखे० गुणा । २५ संका० असंखे० गुणा । $ ४६६. मणुस्साणमोघो। णवरि २२ संकामयाणमुवरि २१ संकाम० संखे ०. गुणा । २३ संका० संखे० गुणा । २६ संका० असंखे० गुणा । २७ संका० असंखे० गुणा । २५ संका० असंखे० गुणा । एवं पञ्जत्तए । णवरि सव्वत्थ संखेज ०गुणं कायव्वं । एवं मणी । वर १४ संका० णत्थि, ओयरमाणविवक्खाभावादो | $ ४६७. आणदादि जाव णवगेवज्जा त्ति सव्वत्थोवा २६ संका० । २५ संका० असंखे० गुणा । २१ संका० संखे० गुणा । २३ संका संखे० गुणा । २७ संका० संखे० २७ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे २५ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार प्रथम पृथिवीके नारकी, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चद्विक, सामान्य देव और सौधर्म कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिये। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक के नारकियों में २१ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे २६ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। इससे आगेका पबहुत्व सामान्य नारकियोंके समान है । इसी प्रकार तिर्यञ्च योनिनी, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिये । $४६५. तिर्यंचोंमें अल्पबहुत्व नारकियों के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें २५ प्रकृतियों के संक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तक और मनुष्य अपर्याप्तकों में २६ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे २७ प्रकृतियों के संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे ६५ प्रकृतियों के संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । $ ४६६. मनुष्यों में अल्पबहुल ओघ के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें २२ प्रकृतियों के संक्रामकोंके आगे २१ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे २३ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे २६ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे २७ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे २५ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार पर्याप्तक मनुष्यों में जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें सर्वत्र संख्यातगुणा करना चाहिये। इसी प्रकार मनुष्यिनियों में अल्पबहुत्व जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें १४ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव नहीं हैं, क्योंकि यहाँ पर उपशमश्रेणिसे उतरनेवाली मनुष्यनियोंकी विवक्षा नहीं की है । $४६७. आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तक्के देवों में २६ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे २५ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे २१ प्रकृतियों के संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे २३ प्रकृतियों के संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। उससे २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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