SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ५८] पयडिसंकमट्ठाणाणं पोसणं २१५ ४२०. पोसणाणु० दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण २७, २५ संका० केव० फोसिदं ? लोग० असंखे भागो अट्ठचोदस० सव्वलोगो वा । २५ संका० सव्वलोगो । २३, २१ लोग० असंखे०भागो अट्ठचोदस० । सेसं खेत्तभंगो। ४२१. आदेसेण णेरइय० २७, २६, २५ संका० लोग० असंखे०भागो छचोद्दस० देसूणा। २३, २१ संका० खेत्तं । विदियादि जाव सत्तमा त्ति एवं चेय । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तभंगो। ६४२२. तिरिक्खेसु २७, २६ संका० लोग. असंखे०भागो सव्वलोगो वा । २५ संका० खेतं । २३ लोग० असंखे०भागो छचोदस० । २१ लोग० असंखे०भागो पंचचोदस०भागा वा देसूणा । पंचिंदियतिरिक्खतिय० २७, २६, २५ संका० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सेसं तिरिक्खोघं । पंचिं०तिरि०अपज०-मणुस०अपज्ज० विशेषार्थ-यद्यपि ऐसी कई मार्गणाएं हैं जिनमें २५ प्रकृतियोंके संक्रामकोका क्षेत्र सब लोक प्राप्त होता है । तथापि यहां केवल तिर्यश्चोंका ही निर्देश किया है सो इसका कारण यह है कि यहाँ सर्वत्र मुख्यतया चार गतियोंकी अपेक्षासे ही अनुयोगद्वारोंका वर्णन किया जा रहा है। और चार गतियोंमें तिर्यञ्चगतिके जीव ही ऐसे हैं जिनका क्षेत्र सब लोक है। इसीसे यहाँ तिर्यञ्चोंमें ही ओघके समान पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंका क्षेत्र बतलाया है। शेष कथन सुगम है। ४२०. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघकी अपेक्षा २७ और २६ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका, सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । २५ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। २३ और २१ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका व त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा शेष पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ६४२१. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें २७, २६ और २५ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा २३ और २१ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक इसी प्रकार जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिये । पहिली पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ६४२२. तिर्यश्चोंमें २७ और २६ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। २५ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जोवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। २३ प्रकृतिक संक्रमस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छहभागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । २१ प्रकृतिक संकमस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पंचेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें २७, २६ और २५ प्रकृतिक संक्रमस्थानघाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष स्थानोंका स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। पंचेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy