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________________ २१४ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ संखे० भागो | आणदादि जाव णवगेवज्जा त्ति २६ संका० असंखे० भागो । २७ संखेञ्जा भागा । सेसं संखे ० भागो । अणुद्दिसादि जाव सव्वट्ठा कि २७ संखेजा भागा । सेसं संखे० भागो । एवं जाव० । $ ४१८. परिमाणाणु० दु० णिद्द सो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण २७, २६, २३, २१ संका० केत्तिया ? असंखेजा २५ संका० के० ? अनंता । सेस० संका० संखेजा । आदेसेण णेरइय० सव्वपदसंका० असंखेजा । एवं सव्वणे रइय ० - सव्वपंचिंदियतिरिक्ख - मणुस अपज ०- देवा जाव अवराइद ति । एवं तिरिक्खा० । णवरि २५ संका ० ता। मणुसे २७, २६, २५ संका० असंखेजा । सेससंका ० संखेज्जा । मणुसपञ्ज०मणि सव्वपदसंका ० संखेजा । एवं सव्वट्टे । एवं जाव० । ० $ ४१९. खेत्ताणु० दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण पणुवीसंका० केवड खेत्ते ? सव्वलोगे । सेससंका० लोग० असंखे० भागे । एवं तिरिक्खा ० | सेसमग्गणासु सव्वपदसं का ० ' लोग० असंखे० भागे । एवं जाव० । कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें २६ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । २७ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । तथा शेष स्थानों के संक्रामक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवोंमें २७ प्रकृतियों के संक्रामक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । तथा शेष स्थानोंके संक्रामक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं | इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये । ६४१८. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । घकी अपेक्षा २७, २६, २३ और २१ प्रकृतियों के संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । २५ प्रकृतियों के संक्रामक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। शेष संक्रमस्थानोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। आदेश की अपेक्षा नारकियों में सब पदोंके संक्रामक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव तथा अपराजित कल्प तकके देवों में जानना चाहिये। इसी प्रकार तियेचोंमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें २५ प्रकृतियों के संक्रामक जीव अनन्त हैं । मनुष्योंमें २७.२६ और २५ प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यात हैं । तथा शेष पदोंके संक्रामक जीव संख्यात हैं । मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियों में सब पदोंके संक्रामक जीव संख्यात हैं । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि में जानना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिये । और आदेश निर्देश | । $४१६, क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघनिर्देश की अपेक्षा पच्चीस प्रकृतियों के संक्रामक जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं तथा शेष पदोंके संक्रामक जीव लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में तिर्यचोंमें जानना चाहिये । शेष मार्गणाओं में सब पदों के संक्रामक जीव लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये । सब लोक में रहते हैं । रहते हैं । इसी प्रकार 1 १. ता० प्रतौ पदसंका०, प्रा० प्रतौ सव्वपदा संका० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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