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________________ २०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ उवसमसम्मत्तं पडिवज्जिय सव्वलहुं मिच्छत्तं गंतूण सव्वजहण्णुव्वेलणकालेण सम्मत्तमुव्वेल्लिय छव्वीससंकामओ होदूण सव्वलहुएण कालेण सम्मामिच्छत्तमुव्वेल्लिय पणुवीससंकमेणंतरिय पोग्गलपरियट्टद्धं देसूणं परिब्भमिय अंतोमुहुत्तावसेसे संसारे उवसमसम्मत्तं पडिवज्जिय छव्वीसं संकामेमाणस्स लद्धमंतरं होइ। ३९७. तेवीसाए जहण्णेणेयंसमयमेत्तरे भण्णमाणे चउवीससंतकम्मिओवसमसम्माइट्ठी तेवीससंकामओ तदद्धाए एयसमओ अत्थि त्ति सासणभावं गंतूण इगिवीससंकमेणंतरिय विदियसमए मिच्छत्तगमणेण तेवीससंकामओ जादो, लद्धमंतरं होइ । अहवा तेवीससंकामओ उवसमसेढिमारुहिय अंतरकरणपरिसमत्तिसमणंतरमेवाणुपुव्वीसंकममाढविय एयसमए वावीससंकमेणंतरिय विदियसमए देवेसुववण्णो तेवीससंकामओ जादो, लद्धं जहण्णमंतरमेयसमयमेत्तं । उक्कस्सेणुवड्डपोग्गलपरियट्टतरपरूवणं कस्सामो । अद्धपोग्गलपरियट्टादिसमए सम्मत्तं पडिवञ्जिय उवसमसम्मत्तकालब्भंतरे चेय अणंताणु०चउकं विसंजोइय तेवीससंकमस्सादि काऊण उवसमसम्मत्तद्वाए छावलियमेत्तावसेसाए आसाणं पडिवण्णो इगिवीससंकमेणंतरिय पुणो मिच्छत्तं गंतूण उवडपोग्गलपरियट्टमेत्तकिया। फिर अतिशीघ्र मिथ्यात्वमें जाकर और सबसे जघन्य उद्वेलन कालके द्वारा सम्यक्त्वकी उद्वेलना करके वह छब्बीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। फिर अति स्वल्प कालके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करके पच्चीस प्रकृतियों के संक्रमण द्वारा छब्बीस प्रकृतियोंके संक्रमणका अन्तर किया। फिर वह कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन काल तक परिभ्रमण करता रहा और जब संसारमें रहनेका काल अन्तमुहूर्त शेष रहा तब वह उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त होकर एक समयके लिये छब्बीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। इस प्रकार प्रकृत स्थानका उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त हो जाता है । ३६७. अब तेईस प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य अन्तर एक समयका कथन करते हैंजो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशम सम्यग्दृष्टि जीव तेईस प्रकृतियोंका संक्रम कर रहा है उसने उपशम सम्यक्त्वके कालमें एक समय शेष रहने पर सासादन गुणस्थानको प्रा प्राप्त होकर इक्कीस प्रकृतियोंके संक्रमणद्वारा एक समयके लिये तेईस प्रकृतियोंके संक्रमका अन्तर किया। फिर दूसरे समयमें मिथ्यात्वमें चले जानेसे वह फिरसे तेईस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। इस प्रकार प्रकृत स्थानका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त हो जाता है। अथवा कोई एक तेईस प्रकृतियोंका संक्रमण करनेवाला जीव उपशमश्रेणि पर चढ़ा और अन्तरकरणकी समाप्तिके बाद ही आनुपूर्वी संक्रमका प्रारम्भ करके एक समयके लिये उसने बाईस प्रकृतियोंके संक्रमण द्वारा तेईस प्रकृतियोंके संक्रमका अन्तर किया। फिर दूसरे समयमें वह देवोंमें उत्पन्न होकर तेईस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। इस प्रकार प्रकृत स्थानका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त हो जाता है । अब इस स्थानके उपार्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट अन्तरका कथन करते हैं-किसी एक जीवने अर्धपद्गलपरिवर्तन कालके प्रथम समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त करके और उपशम सम्यक्त्वके कालके भीतर ही अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करके तेईस प्रकृतियोंके संक्रमका प्रारम्भ किया। फिर उपशम सम्यक्त्वके कालमें छह श्रावलि शेष रहने पर वह सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुआ और इक्कीस प्रकृतियोंके संक्रम द्वारा तेईस प्रकृतियोंके संक्रमका अन्तर करके वह मिथ्यात्वमें गया। फिर वहां १. श्रा०प्रतौ -णेयं समयमेत्तंतरे इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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