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________________ १६२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ एगसमओ। चउवीससंतकम्मियउवसमसम्माइद्विस्स वि एगसमयं सासणगुणपडिवत्तिवसेण पयदजहण्णकालसंभवो वत्तव्यो । * उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि सादिरेयाणि । ६ ३८४. तं जहा–देवणेरड्याणमण्णदरपच्छायदस्स चउवीससंतकम्मियस्स गब्भादिअट्ठवस्साणमंतोमुहुत्तब्भहियाणमुवरि सव्वलहुं दसणमोहक्खवणाए परिणमिय इगिवीससंकमं पारभिय देसूणपुव्वकोडिं संजमभावेण विहरिय कालं काढूण विजयादिसु समऊणतेत्तीससागरोवममेत्तदेवायुगमणुपालिय तत्तो चइय पुव्वकोडाउगमणुस्सपजाएण परिणमिय सव्वजहण्णंतोमुहुत्तावसेसे सिज्झिदव्वए खवयसेढीमारोहणेण?कसायक्खवणाए तेरससंकामयभावमुवणयस्स दोअंतोमुहुत्तब्भहियट्ठवस्सपरिहीणवि'पुव्वकोडीहि सादिरेयतेत्तीससागरोवममेत्तुकस्सकालोवलद्धी जादा । * चोदसण्हं णवण्हं छण्हं पि कालो जहएणेणेयसमझो। ३८५. तत्थ चोदससंकामयस्स जहण्णकालपरूवणोदाहरणं-एको चउवीससंतकम्मिओवसामिओ अट्ठणोकसाए उवसामिय एयसमयचोद्दससंकामओ जादो । विदियसमए भवक्खएण देवेसु उप्पण्णो, लद्धो पयदजहण्णकालो । णवण्हं संकामयस्स जिसके दूसरे समयमें प्रकृत संक्रमस्थानका विनाश हो गया है उसके इस संक्रमस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। इसी प्रकार जो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशमसम्यग्दृष्ट जीव एक समयके लिये सासादन गुणस्थानको प्राप्त होता है उसके भी प्रकृत स्थानका जघन्य काल एक समय कहना चाहिये। * उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है । ६३८४. खुलासा इस प्रकार है-जो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव देव या नरक पर्यायसे आकर तथा गर्भसे लेकर आठ वर्ष और अन्तमुहूर्तके बाद अतिशीघ्र दर्शनमोहकी क्षपणा करके इक्कीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया है। फिर कुछ कम पूर्वकोटि काल तक संयमके साथ विहार करके जो मरा और विजयादिकमें एक समय कम तेतीस सागर काल तक देव पर्यायके साथ रहा है। फिर वहाँसे च्युत होकर जिसने एक पूर्वकोटि आयुके साथ मनुष्य पर्यायको प्राप्त किया है। फिर वहाँ जब सिद्ध होनेके लिये सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहा तब जिसने क्षपकश्रेणी पर चढ़कर और आठ कषायोंका क्षय करके तेरह प्रकृतिक संक्रमस्थानको प्राप्त कर लिया है उसके प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल दो अन्तर्मुहूर्त और आठ वर्ष कम तथा दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर प्राप्त होता है। * चौदह, नौ और छह प्रकृतियोंके संक्रामकका भी जधन्य काल एक समय है। $ ३८५. उसमेंसे चौदह प्रकृतिक संक्रामकके जघन्य कालका कथन करनेके लिये उदाहरण देते हैं-जो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशामक जीव आठ नौ कषायोंका उपशम करके एक समयके लिये चौदह प्रकृतियोंका उपशामक हो गया है और दूसरे समयमें आयुका क्षय हो जानेसे देवोंमें उत्पन्न हुआ है उसके प्रकृत स्थानका जघन्य काल एक सयय प्राप्त होता है। अब नौ प्रकृ १. ता०प्रतौ -हीणो वि, प्रा॰प्रतौ -हीणे वि इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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