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________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ ९ ३७६. संगहि सत्तसंकामयजहण्णु कस्सकालणिण्णयविहाणं वत्तइस्सामोजहणकालो ताव चवीससंतकम्मिओवसामयस्स तिविहमाणोवसामणा परिणदस्स विदियसमए चैव कालं काढूण देवेसुववण्णस्स लब्भदे | उक्कस्सकालो पुण तस्सेव दुविमायो सामणा वावदस्स जाव तदणुवसमो त्ति ताव अंतोमुहुत्तमेत्तो लब्भदे | ९ ३७७. संपहि पंच संकाम यजहणणुकस्सकालपरूवणा कीरदे । तं जहा - तेणेव सत्तसंकामरण दुविहमायोवसामणाए कदाए एयसमयं पंचसंकामओ होतॄण विदियसमए भवक्खएण देवो जादो तस्स पयदजहण्णकालो होइ । उकस्सकालो पुण इगिवीस संतकम्मियोत्रसामगस्स तिविहमायोवसमणपरिणदस्स जाव दुविहमायाणु समो ताव हो । १६० • ९ ३७८. चदुण्हं संकामयम्स जहण्णुक्कस्सकालणिरूवणा कीरदे । तत्थ ताव जहणकालपरूवणोदाहरणं - चउवीस संतकम्मियोवसामगो मायासंजलणमुवसामिय उन्हं संकामओ जादो, तत्थेयसमयमच्छिय विदियसमए जीविदद्धाक्खएण देवो जादो तस्स पयदजहण्णकालो हो । उकस्सकालो व तस्सेव मरणपरिणामविरहियस्स मायासंजलगोवसमप्पहूडि जाब दुविहलोहाणुवसमो चि ताव अंतोमुहुत्तमेतो होड़ । $ ३७९. तिण्हं संकामयस्स जहण्णुकस्सकालपरूवणा कीरदे । तं जहा ९ ३७६ अब सात प्रकृतिक संक्रामकके जघन्य और उत्कृष्ट कालके निर्णय करने की विधि बतलाते हैं - जो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशामक जीव तीन प्रकार के मानका उपशम करके और दूसरे समयमें मर कर देवों में उत्पन्न हुआ है उसके प्रकृत स्थानका जघन्य काल प्राप्त होता है। तथा इसी जीवके दो प्रकारकी मायाका उपशम करते हुए जब तक उनका उपशम नहीं होता है तब तक उक्त स्थानका अन्तर्मुहूर्तं प्रमाण उत्कृष्ट काल प्राप्त होता है । 1 ६ ३७७. अब पाँच प्रकृतिक संक्रामकके जघन्य और उत्कृष्ट कालका कथन करते हैं यथा-वही सात प्रकृतियोंका संक्रामक जीव दो प्रकारकी मायाका उपशम करके एक समय के लिए पाँच प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। फिर दूसरे समयमें आयुका क्षय हो जानेसे देव हो गया । इस प्रकार इस जीवके प्रकृत स्थानका जघन्य काल प्राप्त होता है। तथा इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो उपशामक जीव तीन प्रकारकी मायाका उपशम कर रहा है उसके जब तक दो प्रकारकी मायाका उपशम नहीं हुआ है तब तक प्रकृत स्थानका उत्कृष्ट काल होता है । I ६ ३७८. अब चार प्रकृतिक संक्रामक जीवके जघन्य और उत्कृष्ट कालका कथन करते हैं उसमें भी सर्व प्रथम जघन्य कालका उदाहरण देते हैं- जो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशामक जीव माया संज्वलनका उपशम करके चार प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया और वहाँ एक समय तक रहकर दूसरे समयमें आयुका क्षय हो जानेसे देव हो गया है उसके प्रकृत स्थानका जघन्य काल प्राप्त होता है । तथा मरण के परिणामसे रहित इसी जीवके माया संज्वलनका उपशम होकर जब तक दो प्रकारके लोभका उपशम नहीं होता तब तक उनके उपराम करनेमें जो अन्तर्मुहूर्त काल लगता है वह प्रकृत स्थानका उत्कृष्ट काल होता है । $ ३७६. अब तीन प्रकृतिक संक्रामक जीवके जघन्य और उत्कृष्ट कालका कथन करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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