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________________ १८४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो६ भंगो । एत्थ तदियभंगो जहण्णुकस्सवियप्पसंभवादो तण्णिण्णयपरूपणमुत्तरसुत्तं ॐ तत्थ जो सो सादिओ सपजवसिदो जहणणेण एगसमओ । उक्कस्सेण उवड्डपोग्गलपरियट्ट। ३६३. एत्थ ताव जहण्णकालपरूवणा कीरदे—जो छव्वीससंकामयमिच्छाइट्ठी सम्मामिच्छत्तमुव्वेल्लेमाणो उत्रसमसम्मत्ताहिमुहो होऊण मिच्छत्तपढमहिदीए दुचरिमसमयम्मि सम्मामिच्छत्तचरिमफालिं मिच्छत्तसरूवेण संकामिय पुणो चरिमसमयम्मि पणुवीससंकामगो होऊण से काले पुणो वि छव्वीससंकामओ जादो तस्स लद्धो पयदजहण्णकालो । अहवा अट्ठावीससंतकम्मियउवसमसम्माइट्ठी सत्तावीससंकामओ उवसमसम्मत्तद्धाए एगसमओ अथि त्ति सासणभावं पडिवण्णो पणुवीससंकामयभावेणेगसमयमच्छिय पुणो विदियसमए मिच्छत्तमुवणमिय सत्तावीससंकामओ जादो : अथवा चउवीससंतकम्मिय उवसमसम्माइट्ठी सगद्धाए समयाहियावलियमेत्तसेसाए सासणभावं पडिवण्णो अणंताणुबंधीणं बंधावलियं वोलाविय एगसमयं पणुवीससंकामओ जादो तदणंतरसमए मिच्छत्तं पडिवज्जिय सत्तावीससंकामओ जादो सद्धो सुत्तुत्तजहण्णकालो । उकस्सेणुवड्डपोग्गलपरियट्ट परूवणा कीरदे । तं जहा--अद्धपोग्गलपरियट्टादिसमए सम्मत्तं पडिवज्जिय तत्थ जहण्णमंतोमुत्तमच्छिय मिच्छत्तं गंतूण सव्वलहुँ सम्मत्तलिये आगेका सूत्र कहते हैं * उनमें से जो सादि-सान्त भंग है उसका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल उपाधपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। ६३६३. यहाँ सर्व प्रथम जघन्य कालका कथन करते हैं-छब्बीस प्रकृतियों के संक्रामक जिस मिथ्यादृष्टि जीवने सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करते हुए उपशमसम्यक्त्वके अभिमुख होकर मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके द्विचरम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिका मिथ्यात्वरूपसे संक्रमण किया। पुनः अन्तिम समयमें पच्चीस प्रकृतियोंका संक्रामक होकर तदनन्तर समयमें फिरसे छब्बीस प्रकृतियों का संक्रामक हो गया। उसके प्रकृत जघन्य काल प्राप्त हुआ। अथवा अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो उपशम सम्यग्दृष्टि जीव सत्ताईस प्रक्रतियोंका संक्रमण करते हुए उपशमसम्यक्त्वके कालमें एक समय शेष रहने पर सासादनभावको प्राप्त होकर एक समय तक . पच्चीस प्रकृतियोंका संक्रामक रहा । पुनः दूसरे समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होकर सत्ताईस प्रकृतियोंका संक्रामक ह हो गया उसके पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ। अथवा चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो उपशम सम्यग्दृष्टि जीव अपने कालमें एक समय अधिक एक आवलि शेष रहने पर सासादनभावको प्राप्त हुआ। पुनः अनन्तानुबन्धियोंकी बन्धावलिको बिताकर एक समय तक पच्चीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया और तदनन्तर समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होकर सत्ताईस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया उसके सूत्रोक्त जघन्य काल प्राप्त हुआ । अब पच्चीस प्रकृतिक संक्रामकके उपाधपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट कालका कथन करते हैं। यथा-कोई एक जीव अर्धपुद्गलपरिवर्तन कालके प्रथम समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ और वहाँ सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक रहकर मिथ्यात्वमें गया। पुनः वहाँ सम्यक्त्व और ~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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