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गा० ५६] बंधट्ठाणेसु संकमट्ठाणेसु सेसदुसंजोगभंगपरूवणा
१७५ ___ ३४३. संपहि बंधट्ठाणेसु सेसदुगसंजोगो णिजदे । तं जहा--२२ बंधो होऊण २८, २७, २६ संतकम्मट्ठाणाणि २७, २६, २५, २३ संकमट्ठाणाणि च लभंति । इगिवीसबंधद्वाणम्मि २८ संतकम्म २५, २१ संकमट्ठाणाणि च भवति । सत्तारसबंधट्ठाणम्मि २८, २४, २३, २२, २१ संतकम्मट्ठाणाणि २७, २६, २५, २३, २२, २१ संकमट्ठाणाणि च भवंति । एवमुवरिमबंधट्ठाणेसु वि एक्केकणिरंभणं काऊण तत्थ सेसद्गसंजोगो जहासंभवमणुमग्गणिजो जाव एकिस्से बंधट्ठाणमिदि।
३४४. संपहि संकमट्ठाणेसु बंध-संतट्ठाणाणं दुसंजोगस्साणयणकमो उच्चदे। तं जहा–सत्तावीससंकमे णिरुद्धे अट्ठावीससंतं २२, १७, १३, ९ बंधट्ठाणाणि च भवंति । छव्वीससंकमट्ठाणम्मि २८, २७ संतकम्मट्ठाणाणि २२, १७, १३, ९ बंधट्ठाणाणि च भवंति । पणुवीससंकमट्ठाणम्मि २८, २७, २६ संतकम्मट्ठाणाणि २२, २१, १७ बंधट्ठाणाणि च भवंति । २३ संकमट्ठाणे २८, २४ संतवाणाणि २२, १७, १३, ९, ५ बंधट्ठाणाणि च भवंति । एवमुवरिमसंकमट्ठाणाणं' पि पादेक्कं णिरंभणं काऊण तत्थ संतकम्मट्ठाणाणि बंधट्ठाणाणि च दुसंजोगविसिट्ठाणि णेदव्याणि जाव एगसंकमट्ठाणे ति । एवं णीदे दुसंजोगपरूवणा समत्ता होइ। एसो च सव्वो अदीदगाहासुत्तपबंधोसंकम-पडिग्गह-तदुभयट्ठाणसमुकित्तणाए सामित्तगम्भिणीए पडिबद्धो,
३४३. अव बन्धस्थानोंमें शेष दो संयोगी स्थानोंका विचार करते हैं। यथा - बाईस प्रकृतिक बन्धस्थान होकर २८, २७ और २६ प्रकृतिक तीन सत्कर्मस्थान और २७, २६, २५ और २३ प्रकृतिक चार संक्रमस्थान प्राप्त होते हैं। इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थानमें २८ प्रकृतिक सत्कर्मस्थान तथा २५ और २१ प्रकृतिक संक्रमस्थान होते हैं। सत्रह प्रकृतिक बन्धस्थानमें २८, २४, २३, २२ और २१ प्रकृतिक सत्कर्मस्थान और २७, २६, २५, २३, २२ और २१ प्रकृतिक संक्रमस्थान होते हैं। इसी प्रकार एक प्रकृतिक बन्धस्थानके प्राप्त होनेतक आगेके बन्धस्थानोंमेंसे भी एक एकको विवक्षित करके उसमें यथासम्भव शेष दो संयोगी स्थानोंका विचार कर लेना चाहिये।
३४४. अब संक्रमस्थानों में बन्धस्थानों और सत्कर्मस्थानोंके दो संयोगके लानेका क्रम कहते हैं। यथा-सत्ताईस प्रकृतिक संक्रमस्थानके सद्भावमें २८ प्रकृतिक सत्कर्मस्थान और २२, १७, १३ और ९ प्रकृतिक बन्धस्थान होते हैं। छब्बीस प्रकृतिक संक्रमस्थानमें २८ और २७ प्रकृतिक सत्कर्मस्थान और २२, १७, १३ और ९ प्रकृतिक बन्धस्थान होते हैं। पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थानमें २८. २७ और २६ प्रकृतिक सत्कर्मस्थान तथा २२, २१ और १७ प्रकृतिक बन्धस्थान होते हैं। २३ प्रकृतिक संक्रमस्थानमें २८ और २४ प्रकृतिक सत्कर्मस्थान तथा २२, १७, १३, ९
और ५ प्रकृतिक बन्धस्थान होते हैं। इस प्रकार एक प्रकृतिक संक्रमस्थानके प्राप्त होने तक आगेके सब संक्रमस्थानोंमें से भी प्रत्येकको विवक्षित करके उसमें सत्कर्मस्थानों और बन्धस्थानों के दो संयोगी स्थानोंका विचार कर लेना चाहिये । इस प्रकार विचार करनेपर दो संयोगी प्ररूपणा समाप्त होती है । ३० यह सब अतीत गाथासूत्रों का कथन स्वामित्वको सूचित करनेवाले संक्रमस्थानों,
१. ता०प्रतौ एवमुवरि संकमट्ठाणाणं इति पाठः। २. श्रा०प्रतौ संकमट्ठाणाणि इति पाठः । ३. ता प्रतौ -गब्भणीए ? आप्रतौ -गब्भणाए इति पाठः ।
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