SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ तिविहमाण-माया-दुविहलोहपयडिसंकमो तिसु संजलणपयडीसु लब्भदे, ताहे कोहसंजलणणवकबंधस्स संकमं मोत्तूण पडिग्गहित्ताभावादो ॥१०॥ : २९३. 'अट्ठ दुग तिग चदुक्के०' एसा एकारसमी गाहा ८, ७, ६, ५ एदेसि चउण्हं संकमट्ठाणाणं पडिग्गहणियमपरूवणटुमागया । तत्थ पढमावयवो अट्ठपयडिसंकमस्स दुग-तिग-चदुक्केसु पडिग्गहट्ठाणेसु पडिबद्धपरूवणट्ठमागओ । इगिवीसचउवीससंतकम्मियोवसामगेसु जहाकम तिविहकोह-दुविह-माणोवसमेण परिणदेसु तिगचउक्कपडिग्गहट्ठाणपडिबद्धपढमसमयअट्ठपयडिसंकमट्ठाणमुवलब्भदे, इगिवीससंतकम्मियस्स माणसंजलणपढमहिदीए समयूणावलियतियमेत्तावसेसाए दुविहमाणं तत्थासंकामिय संजलणमायाए संछुहमाणस्स माणसंजलणपडिग्गहसत्तिविरहेणे माया-लोभसंजलणाणं दोण्हमेव पडिग्गहभावेण अट्ठपयडिसंकमो लब्भइ । 'सत्त चदु०-सत्तपयडिसंकमो चदुक्के तिगे च पडिणियदो बोद्धव्वो। चउवीससंतकम्मियस्स तिविहमाणोवसमाणंतरं चउण्हं पडिग्गहभावेण सत्तपयडिसंकमो लब्भदे । एदस्स चेव समयूणावलियतियमेतमायासंजलणपढमहिदिवारयस्स मायासंजलणपडिग्गहस्स विरामेण तिण्हं पडिग्गहत्तमान, तीन प्रकारको माया और दो प्रकारका लोभ इन नौ प्रकृतियोंका तीन संज्वलन प्रकृतियोंमें संक्रम उपलब्ध होता है, क्योंकि तब क्रोधसंज्वलनके नवकबन्धका संक्रम तो होता है पर उसमें प्रतिग्रहपनेका अभाव रहता है ॥१०॥ विशेषार्थ--इस दसवीं गाथा द्वारा १२, ११, १० और ९ इन चार संक्रमस्थानोंके प्रतिग्रहस्थान बतलाये हैं । विशेष खुलासा टीकामें ही किया है। २९३. 'अट्ठ दुग तिग चदुक्के०' यह ग्यारहवीं गाथा ६, ७, ६ और ५ इन चार संक्रमस्थानोंके प्रतिग्रहस्थानोंका कथन करनेके लिये आई है। उसमें भी गाथाका प्रथम चरण आठ प्रकृतिक संक्रमस्थानका दो, तीन और चार प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानोंसे सम्बध है यह बतलानेके लिये आया है। इक्कीस प्रकृतियोंकी या चौबीस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाले जिन उपशामक जीवोंने तीन प्रकारके क्रोध और दो प्रकारके मानका उपशम कर लिया है उनके प्रथम समयमें क्रमसे तीन प्रकृतिक और चार प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानोंसे सम्बन्ध रखनेवाला आठ प्रकृतिक संक्रमस्थान प्राप्त होता है, क्योंकि जो इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव मान संज्वलनकी प्रथम स्थितिमें एक समय कम तीन श्रावलि काल के शेष रह जाने पर दो प्रकारके मानका उसमें संक्रम न करके संज्वलन मायामें संक्रम करता है उसके मान संज्वलनमें प्रतिग्रहरूप शक्ति न रहनेके कारण मायासंज्वलन और लोभसंज्वलन इन दो प्रकृतियोंके प्रतिग्रहरूपसे आठ प्रकृतिक संक्रमस्थान उपलब्ध होता है। 'सत्त चदु., इत्यादि गाथाका दूसरा चरण है । इस द्वारा चार प्रकृतिक और तीन प्रकृतिक इन दो प्रतिग्रहस्थानोंमें सात प्रकृतियोंका संक्रम प्रतिनियत जानना चाहिए । यथा-चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जीवके तीन प्रकारके मानका उपशम होनेके बाद चार प्रकृतियोंके प्रतिग्रहरूपसे सात प्रकृतिक संक्रमस्थान प्राप्त होता है। तथा इसी जीवके मायासंज्वलनकी एक समय कम तीन श्रावलिप्रमाण प्रथम स्थिति शेष रहने पर माया संज्वलनमें प्रतिग्रह शक्ति न रहनेसे तीन प्रकृतिक १. ता प्रतौ दुविहं माणं इति पाठः । २. श्रा०प्रतौ -संजलणविग्गहसत्तिविरहेण इति पाटः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy