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गा० २२]
उत्तरपरिषदेसबिहनीय कालपरूषणा ____८४. आदेसेण गेरइएमु सतावीसं पपडीणमुक० पदे. जह० एगस०, उक० भावलि० असंखे०भागो। अणुक्क० सबदा । सम्मत्त० ओघं । एवं पढमाए । विदियादि जाव सत्तमि ति अठ्ठावीसं पयडीणमुक० पदे. जह• एगस०, उक० आवलि. असंखे०भागो । अणुक्क० सव्वदा ।
६ ८५. तिरिक्खगदीए तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ताणं पढमपुढविभंगो। पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीणं विदियपुढविभंगो । एवं पंचिंदियतिरिक्वअपज्जत्ताणं ।
८६. मणुस्सगदीए मणुस्स० मिच्छत्त-बारसक०-छण्णोक० उक० पदे० जह. एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। अणुक० सव्वदा । सम्म०-सम्मामि०चदुसंजल० तिण्हं वेदाणमुक्क० जह० एगस०, उक० संखेजा समया । अणुक्क० सम्बद्धा। मणुसपज्ज०-मणुसिणीसु अहावीसं पयडीणमुक्क० पदे० जह• एगस०, उक्क० अपेक्षा निरन्तर संख्यात समय तक हो सकती है, इसलिए इनकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। नाना जीवोंकी अपेक्षा ऐसा समय नहीं प्राप्त होता जब किसी प्रकृतिकी सत्ता न हो, इसलिए सबकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल सर्वदा कहा है।
८४. आदेशसे नारकियोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल सर्वदा है। सम्यक्त्व प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं तक प्रत्येक पृथिवीमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल सर्वदा है।
विशेषार्थ—सामान्यसे नारकियोंमें और पहली पृथिवीमें कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं, इसलिए इनमें सम्यक्त्व प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान बन जाता है। शेष कथन स्पष्ट ही है।
८५. तिर्यश्चगतिमें तिर्यञ्च, पञ्चन्द्रिय तिर्यश्च और पञ्चेन्द्रिय तिर्थश्च पयर्ताक जीवोंमें पहिली पृथिवीके समान भङ्ग है। पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी जीवोंमें दूसरी पृथिवीके समान भङ्ग है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
विशेषार्थ-प्रारम्भके तीन प्रकारके तिर्यञ्चोंमें कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं, इसलिए इनमें पहली पृथिवीके समान भङ्ग बन जानेसे उसके समान जाननेकी सूचना की है। शेष कथन स्पष्ट ही है।
६८६. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल सर्पदा है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, चार संज्वलन और तीन वेदोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल सर्वदा है। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें अट्ठाईस
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