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________________ Wwirir जयपवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहती ५ जह०-अज० लोग० असंखे भागो अडचो६० देसूणा । आणदादि जाव अच्चुदो ति वावीस पयडीणं जह० लोग० असंखे०भागो । अज० लोग० असंखे भागो छचोद. देसूणा । सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु० चउक० जह०-अज० लोग० असंखे०भागो छचोद० देसणा । उपरि खेत्तभंगो । एवं णेदव्वं जाव प्रणाहारि ति । * सव्वकम्माणं णाणाजीवेहि कालो कायव्यो । ८३. सुगममेदं सुत्त । संपहि एदेण मुत्तेण मूचिदत्यस्स उच्चारणं वत्तइस्सामो । तं जहा-कालो दुविहो, जहण्णओ उक्कस्सओ चेदि । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि सो-ओघेण आदेसेण य । अोघेण मिच्छत्त-बारसक०-अहणोक० उक० पदेसवि० जह• एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे भागो। अणुक्क० सव्वदा । सम्म०-सम्मामि०-चदुसंज०-पुरिसवेद० उक० पदे० जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । अणुक्क० सव्वदा । वाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आनतसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें बाईस प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और बसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इनसे ऊपरके देवोंमें क्षेत्रके समान भङ्ग है। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए। इस प्रकार स्पर्शन समाप्त हुआ। ॐ सब कर्मोका नाना जीवोंकी अपेक्षा काल करना चाहिए। ८३. यह सूत्र सुगम है। अब इस सूत्रसे सूचित हुए अर्थकी उच्चारणा बतलाते हैं। यथा, काल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय और आठ नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल सर्वदा है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, चार संज्वलन और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट प्रदेवभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल सर्वदा है। विशेषार्थ- सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति एक समय तक हो और द्वितीय समयमें न हो यह सम्भव है, इसलिए सबकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कहा है। तथा मिथ्यात्व आदिकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति नाना जीवोंकी अपेक्षा लगातार असंख्यात समय तक हो सकती है, इसलिए इनकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है और शेष सात प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति नाना जीवोंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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