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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ असंखे भागो एक-बे-तिण्णि-चत्तारि-पंचचोद्दस भागा वा देसूणा ।
७८. तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु छव्वीसं पयडीणं जह० खेत्तं । अज० सव्वलोगो । सम्म०-सम्मामि० जह• अज० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस्सु छव्वीसं पयडीणं जह• लोग० असंखे०भागो । अज० लोगस्स असंखेजदिभागो सबलोगो वा । सम्म०-सम्मामि० जह०-अज. लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा।
__७६. देवगदीए देवेसु छब्बीसं पयडीणं जह० लोग० असंखे०भागो। अज० लोग० असंखे भागो अह-णवचोदस० देसूणा। सम्म-सम्मामि० जह० अज० लोग० असंखे० भागो अह-णवचोद्द० देसूणा ।
८०. भवण०-वाण-जोइसि. बावीसं पयडीणं जह• लोग० असंखे०है। दूसरीसे लेकर छठी तककी पृथिवियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा क्रमसे त्रसनालीके कुछ कम एक, कुछ कम दो, कुछ कम तीन, कुछ कम चार और कुछ कम पाँच बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ—नारकियोंमें और उनके अवान्तर भेदोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिकी अपेक्षा जो स्पर्शन घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहाँ भी घटित कर लेन चाहिए । आगे भी अपनी अपनी विशेषता जानकर स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए।
६७८. तियंञ्चगतिमें तिर्यञ्चोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और सब मनुष्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेश विभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
६७६. देवगतिमें छब्बीस प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश विभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम आठ तथा कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ- यहाँ सामान्य देवोंमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य प्रदेशविभक्ति दीर्घ आयुवाले देवोंमें होती है और उनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए उनकी अपेक्षा स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
६८०. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें बाईस प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति
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