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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहस्त्री ५ एवं सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं। णवरि अज० जह० एगसमओ। सत्तणोक० जह० पदे० जहण्णुक० एगस० । अज० जहण्णुक्क० अंतोमु । एवं मणुसअपज्जत्ताण । ६ ३२. मणुसतियम्मि मिच्छत्त-बारसक०-णवणोकसायाणं जह० पदे. जहणुक० एगसमओ। अज० जह० खुद्दाभव. अंतोमु, उक्क० सगहिदी। सम्मत्तसम्मामि०-अणंताणु०चउक्काणं जह• पदे० जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह० एगस०, उक० सगहिदीओ। जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है। सात नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। विशेषार्थ-यहाँ मिथ्यात्व आदि उन्नीस प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्ति भवके प्रथम समयमें होती है, इसलिए इसका जघन्य काल एक समय कम शुल्लकभवग्रहणप्रमाण कहा है। सम्यक्त्वद्विकके अजघन्य प्रदेशसत्त्वका जघन्य काल एक समय उद्वेलनाकी अपेक्षा प्राप्त होता है यह स्पष्ट ही है। तथा सात नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति भवग्रहणके अन्तर्मुहूर्त बाद होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशभिक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । तथा यहाँ सभी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है यह स्पष्ट ही है। ३२. मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल सामान्य मनुष्योंमें क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और शेष दोमें अन्तर्मुहूर्तप्रमाण तथा तीनोंमें उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबम्धीचतुष्ककी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थिति प्रमाण है। विशेषार्थ—सामान्य मनुष्योंकी जघन्य स्थिति क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण, शेष दोकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण तथा तीनोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति पूर्वकोटि अधिक तीन पल्यप्रमाण होती है, इसलिए इनमें मिथ्यात्व आदि बाईस प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल सामान्य मनुष्योंमें तुल्लकभवग्रहणप्रमाण, शेष दोमें अन्तर्मुहूर्तप्रमाण और उत्कृष्ट काल तीनोंमें कायस्थितिप्रमाण कहा है, क्योंकि इन तीनों प्रकारके मनुष्योंमें क्षपणाके समय यथायोग्य स्थानमें उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है, इसलिए यहाँ पर इन प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिके उक्त कालके प्राप्त होने में कोई बाधा नहीं आती। अब रहीं शेष छह प्रकृतियाँ सो इनमेंसे जिन जीवोंने सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनामें एक समय शेष रहने पर मनुष्य पर्याय प्राप्त की है उनके इन दो प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय बन जाता है। तथा जो मनुष्य अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करके मनुष्य पर्याय में एक समय शेष रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त होते हैं उनके इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय बन जाता है, इसलिए यहाँ इन छह प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कहा है। यहाँ इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल कायस्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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