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________________ जय धवला सहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ वस्सायामाणि होऊण संखेज्जहिदिबंधसहस्साणि गच्छति जाव संखेज्जव सहिदिबंधो जादो ति । कम्हि पुणो संखेज्जवस्सियो द्विदिबंधो होइ त्ति भणिदे अंतरकरणसमत्तिपढमसमए होइ । ४१४ S $ ६८०, संपहि एत्थतणसंचयं गहिदुमिच्छामो त्ति ओवट्टणे उविज्जमाणे एवं पंचिदियसमयपबद्धं ठविय पुणो एदस्स संखेज्जावलियमेत्तं संपहियद्विदिव घायामं भागहारं ठविय भागे हिदे एयगोवुच्छमागच्छइ । एवमं तोमुहुत्तं चैव हिदिं बधइ तितोमुहुतेण तम्मि भागहारे ओट्टिदे समयपबद्ध भागहारो संखेज्जरूवमेत्तो होइ । एदं पि दव्वं पुध वेयव्वं । पुणो अण्णेगं द्विदिबधं बधमाणो पुव्विल्लब' धादो संखेज्जगुणहीण दो ओसरइ । एदस्स वि पुत्रओवट्टणं कायन्त्रं । णवरि पुव्विल्लसंचयादो इमो संखेज्जगुणो । एसो वि पुध ठवेयव्वो । एवमेदेण कमेण संखेज्जगुणहीणो बंध होऊण गच्छइ जाव बत्तीसवरसमेत्तो द्विदिवधो जादोति । सो कम्हि होइ ति पुच्छिदे चरिमसमय पुरिसवेदव धयम्मि होइ । तत्तो पहुडि हिदिबधो विसेसहीणो होऊण गच्छइ । एवं संखेज्जे हिदिबंधे ओसारिय णेदव्वं जाव कोहसंजलणस्स संखेज्जं तो मुहुतमहिय अवस्समेतद्विदिबंधो त्ति । तत्तो उवरि संचयं ण लहामो । किं कारणं १ एतो उवरिमडिदिव धाणमहियारद्विदीदो हेट्ठा चेव पउत्तिदंसणादो | 1 भी पृथक् स्थापित करना चाहिये । इस प्रकार संख्यात वर्षका स्थितिबन्ध प्राप्त होनेतक असंख्यात वर्षके आयामवाले संख्यात हजार स्थितिबन्ध होते हैं । शंका संख्यात वर्षका स्थितिबन्ध किस स्थान में होता है ? समाधान अन्तरकरणकी समाप्तिके बाद प्रथम समय में होता है । ९६८०. अब यहांका संचय लाना इष्ट है इसलिये इसके भागहारको बतलाते हैंपंचेन्द्रियके एक समयबद्धको स्थापित करके फिर इसका वर्तमान स्थितिबन्धके आयामवाला संख्यात आवलिप्रमाण भागहार स्थापित करके भाग देने पर एक गोपुच्छाका प्रमाण प्राप्त होता है । इसप्रकार अन्तर्मुहूर्त तक ही स्थिति बाँधता है इसलिये इस भागहार में अन्तर्मुहूर्तका भाग देने पर समयबद्धका भागहार संख्यात अंकप्रमाण प्राप्त होता है । इस द्रव्यकों भी पृथक् स्थापित करे | फिर एक दूसरे स्थितिबन्धको बाँधता हुआ पूर्वोक्त बन्धसे संख्यातगुणा हीन नीचे जाकर है । इसे भी पहले के समान भाजित करना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि पिछले सञ्चयसे यह सञ्चय संख्यातगुणा होता है । इसे भी पृथक् स्थापित करना चाहिये । इस प्रकार बत्तीस वर्षप्रमाण स्थितिबन्धके प्राप्त होनेतक उत्तरोत्तर बन्ध संख्यातगुणा हीन होता जाता है । शंका-बत्तीस वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध किस स्थान में जाकर होता है ? समाधान - पुरुषवेदके बन्धके अन्तिम समय में होता है । इससे आगे स्थितिबन्ध उत्तरोत्तर विशेष हीन होता जाता है। इस प्रकार क्रोधसंज्वलन के संख्यात अन्तर्मुहूर्तं अधिक आठ वर्षप्रमाण स्थितिबन्धके प्राप्त होने तक संख्यात स्थितिबन्ध हो लेते हैं । अब इससे आगे संचय नहीं प्राप्त होता, क्योंकि इससे ऊपरके स्थितिबन्ध अधिकृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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