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________________ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं ३६३ ___ ६४३. एदम्मि पुण अधाणिसेयसंचयकालभंतरे सो गैरइओ बहुसो बहुसो तप्पाओग्गुक्कस्सयाणि जोगहाणाणि परिणदो, तेहि विणा पयदुक्कस्ससंचयाणुप्पत्तीदो त्ति एदेण जोगावासयं परूविदं । एत्थ तप्पाओग्गविसेसणं समयाविरोहेण तहा परिणदो ति जाणावण । जाव संभवो ताव सव्वुकस्सजोगेणेव परिणमिय तस्सासंभवे तप्पाओग्गुक्कस्सयाणि जोगहाणि बहुसो गदो ति भणिदं होइ। ॐ तप्पाओग्गउक्कस्सियाहि वडीहि वडिदो। ६६४४. संखेज्जगुणवडि-असंखेजगुणवडि-संखेजभागवड्डिसण्णिदाहि जोगचड्डीहि पदेसबंधउडिअविणाभावीहि समयाविरोहेण वडिदो । तासिमसंभवे पुण असंखेजभागवड्डीए वि वडिदो त्ति वुत्तं होइ । णेदं पुव्वुत्तत्थपरूवणादो पुणरुतं, तस्सेव विसेसियूण परूवणादो। तम्हा एदेण वि जोगावासयं चेव विसेसिदमिदि घेत्तव्वं । ॐ तिस्से हिदीए णिसेयस्स उक्कस्सपदं । ६४५. जहाणिसेयकालब्भंतरे सव्वत्थोवजहण्णाबाहाए उक्कस्सजोगेण च जहण्णयहिदि बंधमाणो सामित्तहिदीए उकस्सपदं काऊण णिसिंचइ ति भणिदं होइ, णिसेयाणमण्णहा थोवभावाणुववत्तीदो। संपहि एदेण विहाणेणाणुसारिदथोवूण ६६४३. परन्तु इस यथानिषेकके संचय कालके भीतर वह नारकी अनेक बार तद्योग्य उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त हुआ, क्योंकि उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त हुए बिना प्रकृत उत्कृष्ट संचय नहीं बन सकता है. इस प्रकार इस सूत्रके द्वारा योगावश्यकका कथन किया गया है। यहाँ सूत्रमें तत्प्रायोग्य यह विशेषण आगमानुसार उस प्रकारसे परिणत हुआ यह बतलानेके लिये दिया है । जब तक सम्भव हो तब तक सर्वोत्कृष्ट योगसे ही परिणत रहे और जब सर्वोत्कृष्ट योग सम्भव न हो तब बहुत बार तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त होवे यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * तत्यायोग्य उत्कृष्ट वृद्धियोंसे वृद्धिको प्राप्त हुआ। ६६४४. प्रदेशबन्धवृद्धिकी अविनाभावी संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और संख्यातभागवृद्धि इन तीन वृद्धियोंके द्वारा जो आगममें बतलाई गई विधिके अनुसार वृद्धिको प्राप्त हुआ है। परन्तु जब ये तीन वृद्धियाँ असम्भव हों तब वह असंख्यातभागवृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त होवे यह उक्त कथनका सार है। यदि कहा जाय कि पुनरुक्त अर्थका कथन करनेवाला होनेसे यह सूत्र पुनरुक्त है सो भी बात नहीं है, क्योंकि उसी पूर्वोक्त सूत्रके विशेषणरूपसे इस सूत्रका कथन किया है। इसलिये इस सूत्र द्वारा भी योगावश्यकोंकी विशेषता बतलाई गई है यह अर्थ यहाँ पर लेना चाहिये। ___* उस स्थितिके निषेकके उत्कृष्ट पदको प्राप्त हुआ। ६६४५. यथानिषेक कालके भीतर सबसे कम जघन्य आबाधा और उत्कृष्ट योगके द्वारा जघन्य स्थितिको बाँधनेवाला वह जीव स्वामित्वविषयक स्थितिमें उत्कृष्टरूपसे कर्मपरमाणुओंको करके उनका निक्षेप करता है यह इस सूत्रका तात्पर्य है, अन्यथा अल्प निषेक नहीं प्राप्त हो ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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