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गा० २२] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं
३८५ एयगुणहाणिअद्धाणपमाणमिदि थूलसरूवेण गहेयव्वं ।
६६३३. पुणो विदियगुणहाणिप्पहुडि हेढदो बहुगं झीयमाणं गच्छइ जाव अधाणिसेयकालपढमसमओ ति । एत्थ सव्वत्थ वि गुणहाणिश्रद्धाणमणंतरपरूविदमवहिदसरूवेण घेत्तव्वं । णिसेयभागहारो पुण दुगुणोक्कड कड्डणभागहारमेत्तो । एत्थ पुण एरिसीओ असंखेज्जाओ गुणहाणीओ अत्थि, अधाणिसेयसंचयकालस्स असंखेजपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणत्तादो । तदो अधाणिसेयकालपढमसमयम्मि बद्धसमयपबद्धदव्वमेत्थ चरिमणिसेओ चि घेतव्वं ।
६६३४. संपहि एदमसंखेज्जगुणहाणिदव्वं सव्वं समयुत्तराबाहार ठाइदूण बद्धसमयपबद्धक्कस्सपढमणिसेयपमाणेण समकरणं काउण जोइदे दिवड्डोकड कड्डणभागहारमेत्तो गुणगारो उप्पजइ। सो च एसो | १ || एसो च' सुत्तुत्तगुणयारादो
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अदाहिओ जादो ति एदं मोत्तूण पयारंतरेण गुणगारपरूवणमणुवत्तइस्सामो। तं जहा-समउत्तरजहण्णाबाहाए ठाइदण बद्धसमयपबदसव्वुक्कस्सजहाणिसेयप्पहुडि हेटा विसेसहीगं विसेसहीणं होऊण गच्छमाणमोकड्ड कडणभागहारदुभागमेतद्धाणं प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये और यही एक गुणहानिस्थानका प्रमाण है ऐसा स्थूलरूपसे ग्रहण करना चाहिये।
६६३३. फिर दूसरी गुणाहानिसे लेकर यथानिषेकके कालके प्रथम समयके प्राप्त होने तक नीचे बहुतसा द्रव्य क्षयको प्राप्त हो जाता है। यहाँ सर्वत्र गुणहानिअध्वानको पूर्वमें कहे गये गुणहानिअध्वानके समान अवस्थितरूपसे ग्रहण करना चाहिये । निषेकभागहार तो अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारसे दूना है। परन्तु यहाँ पर ऐसी असंख्यात गुणहानियाँ होती हैं, क्योंकि यथानिषेकका संचयकाल पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है, इसलिये यथानिषेकके कालके प्रथम समयमें जो समयप्रबद्धका द्रव्य बंधता है उसे यहाँ अन्तिम निषेकरूपसे ग्रहण करना चाहिये।
६६३४. अब इस असंख्यात गुणहानिप्रमाण समस्त द्रव्यको एक समय अधिक आबाधाको स्थापित करके उस समय बँधे हुए समयप्रबद्धके उत्कृष्ट प्रथम निषेकके प्रमाणरूपसे समीकरण करके देखने पर अाकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे डेढ़ गुणा गुणकार उत्पन्न होता है। वह यह १३ है। और यह सूत्रोक्त गुणकारसे अर्धभागप्रमाण अधिक हो गया है, इसलिए इसे छोड़कर प्रकारान्तरसे गुणकारका कथन बतलाते हैं। वह इस प्रकार है-एक समय अधिक जघन्य आबाधाको स्थापित करके जो समयप्रबद्ध बंधता है उसके सबसे उत्कृष्ट यथानिषेकसे लेकर पीछेके निषेक एक एक चय कम होते जाते हैं। और इस प्रकार अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारका
१. ता. प्रतौ 'एसो|२|| एसो च' इति पाठः।
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