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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ६२८, जो पुव्वं थोवभावेण परूविदो ओकड्डक्कड्डणाए कम्मस्स अवहारकालो सो पमाणेण पलिदोवसस्स असंखेजदिभागो होइ । कथमेदं परिच्छिज्जदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो । संपहि एवमवहारिदपमाणस्स ओकड्डक्कड्डणभागहारस्त पयदगुणगारत्तविहाणमुत्तरसुत्तं
_ एवदिगुणमेक्कस्स समयपबद्धस्स एकिस्से हिदीए उक्कस्सयादो जहाणिसेयादो उक्कस्सयमधाणिसेयहिदिपत्तयं ।।
६२६. जावदिओ एसो ओकड्ड क्कड्डणाए कम्मस्स अवहारकालो एवदिगुणं णिरुद्धहिदीदो समयुत्तरजहण्णाबाहमेत्तमोसक्कियूण बद्धसमयपबद्धपढमणिसेयपडिबद्धादो उक्कस्सयादो अधाणिसेयादो ओघुक्कस्सयमधाणिसेयहिदिपत्तयं सगसंचयकालभंतरसंचयं होइ ति भणिदं होदि ।
६३०. संपहि एदेण सुत्तेण परूविदोकडकड्डणभागहारमेत्तगुणगारसाहणहमिमा ताव परूवणा कीरदे। तं जहा–उक्कस्सयसामित्तसमयादो हेडदो समयुत्तर
६६२८. जो पहले अल्परूपसे कर्मका अकर्षण-उत्कर्षणअवहारकाल कहा है वह पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-इसी सूत्रसे जाना जाता है ।
इस प्रकार अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारके प्रमाणका निश्चय करके अब उसका प्रकृत गुणकाररूपसे विधान करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
___* एक समयप्रबद्धकी एक स्थितिमें प्राप्त उत्कृष्ट यथानिषेकसे उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्य इतना गुणा है।
६६२६, अपकर्षण-उत्कर्पणके द्वारा कर्मका यह अवहारकाल जितना है, विवक्षित स्थितिसे एक समय अधिक जघन्य आबाधाप्रमाण स्थान पीछे जाकर जो समयप्रबद्ध बँधा है उसके प्रथम निषेकसम्बन्धी उत्कृष्ट यथानिषेकसे ओघ उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्य अपने संचयकालके भीतर संचय रूप होता हुआ उतना गुणा है यह इस सूत्रका तात्पर्य है।
विशेषार्थ—यहाँ विवक्षित स्थिति में यथानिषेकस्थितिप्राप्त उत्कृष्ट द्रव्य कितना होता है इसका प्रमाण बतलाया है। यह तो पहले ही बतला आये हैं कि इसमें कितने कालके भीतर संचित हुए यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यका ग्रहण किया गया है। अब उस संचयको प्राप्त करनेके लिये यह करना चाहिये कि विवक्षित स्थितिसे एक समय अधिक जघन्य आबाधाप्रमाण स्थान पीछे जाकर जो समयप्रबद्ध बँधा हो उसके प्रथम निषेकमें जितना उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्य हो उसे अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे गुणा कर देना चाहिये। सो ऐसा करनेसे विवक्षित स्थितिमें उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यका प्रमाण आ जाता है । यह उक्त कथनका तात्पर्य है । वहाँ प्रकरणसे कुछ अवहार कालोंका अल्पबहुत्व भी बतलाया है सो वह अपकर्षण-उत्कर्षण अवहारकालका प्रमाण प्राप्त करनेके लिये ही बतलाया है ऐसा समझना चाहिये।
६६३०. इस सूत्र द्वारा जो अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारप्रमाण गुणकार कहा है सो उसकी सिद्धिके लिये अब यह प्ररूपणा करते है। वह इस प्रकार है--उत्कृष्ट स्वामित्वके समयसे नीचे
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