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________________ गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणामीणचूलियाए अप्पाबहुअं ३६५ पलिदोवमपढमवग्गमूलं असंखेजगुणं । सुगममेत्य कारणं । एगपदेसगुणहाणिहाणंतरमसंखेज्जगुणं । कारणं णाणागुणहाणिसलागाहि कम्महिदीए ओवहिदाए असंखेजाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि आगच्छंति ति। दिवडगुणहाणिहाणंतरं विसेसाहियं । के० विसेसो ? दुभागमेत्तेण । गिसेयभागहारो विसेसो। के०मेत्तेण १ तिभागमेत्तेण । अण्णोण्णब्भत्थरासी असंखे०गुणो। एत्थ कारणं सुगमं । पलिदोवममसंखेजगुणं । सुगमं । विज्झादसंकमभागहारो असंखेजगुणो। किं कारणं ? अंगुलस्स असंखे०भागपमाणत्तादो। उव्वेल्लणभागहारो असंखेज्जगुणो। दोण्हमेदेसिमंगुलस्सासंखे०भागपमाणत्ताविसेसे वि पदेससंकयप्पाबहुअसुत्तादो एदस्सासंखेजगुणमवगम्मदे । अणुभागवग्गणाणं गाणापदेसगुणहाणिसलागाओ अणंतगुणाओ। किं कारणं ? अभवसिद्धिएहिंतो अणंतगुणं सिद्धाणमणंतभागपमाणतादो । एगपदेसगुणहाणि शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-परम गुरुओंके उपदेशसे जाना जाता है। पल्यके अर्धच्छेदोंसे पल्यका प्रथम वर्गमूल असंख्यातगुणा है। इसका कारण सुगम है। इससे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है, क्योंकि कर्मस्थितिमें नानागुणाहानिशलाकाओंका भाग देनेपर पल्यके असंख्यात प्रथमवर्गमूल प्राप्त होते हैं। एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरसे डेढ़गुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक है। शंका-कितना अधिक है ? समाधान-दूसरा भाग अधिक है। डेढ़गुणहानिस्थानान्तरसे निषेकभागहार विशेष अधिक है। शंका-कितना अधिक है ? समाधान-तीसरा भाग अधिक है। निषेकभागहारसे अन्योन्याभ्यस्तराशि असंख्यातगुणी है। इसका कारण सुगम है। इससे पल्य असंख्यातगुणा है। इसका भी कारण सुगम है। इससे विध्यातसंक्रमभागहार असंख्यातगुणा है। शंका-इसके असंख्यातगुणे होनेका क्या कारण है ? समाधान—क्योंकि विध्यातसंक्रमभागहार अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिये इसे पल्यसे असंख्यातगुणा बतलाया है। विध्यातसंक्रमभागहारसे उद्वेलनभागहार असंख्यातगुणा है। यद्यपि ये दोनों ही भागहार अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं तो भी प्रदेशसंक्रमअल्पबहुत्वविषयक सूत्रसे ज्ञात होता है कि विध्यातसंक्रमभागहारसे उद्वेलनभागहार असंख्यातगुणा है। उद्वेलनभागहारसे अनुभाग वर्गणाओंकी नानाप्रदेशगुणहानिशलाकाएँ अनन्तगुणी हैं, क्योंकि ये अभव्योंसे अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं। इससे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर अनन्तगुणा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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