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________________ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए मीणाझीणचूलियाए अप्पाबहुअं ५६५. कुदो ? हस्स-रइथिउकसंकमेण सह पत्तोदयएयणिसेयग्गहणादो । केत्यिमेत्तो विसेसो ? अंतोमुहुत्तमेत्तगोवुच्छविसेसेहिं ऊणहस्स-रइथिवुक्कसंकममेत्तो। ५६६. संपहि एत्थुद्दे से सव्वेसिमत्थाहियाराणं साहारणभूदमप्पाबहुअदंडयं मज्झदीवयभावेण परूवइस्सामो। तं जहा-सव्वत्थोवो सव्वसंकमभागहारो । किं कारणं ? एगरूवपमाणत्तादो । गुणसंकमभागहारो असंखेजगुणो। किं कारणं ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागपमाणत्तादो । ओकडकडणभागहारो असंखेजगुणो। एसो वि पलिदो० असंखेज्जदिभागो चेव, किंतु पुग्विल्लदो एसो असंखेज्जगुणो ति गुरूवएसो। अधापवत्तभागहारो असंखेजगुणो। एदस्स कारणं सुत्तणिवद्धमेव । तं कथं ? हिदिअंतिए मिच्छत्तस्स उक्कस्सअधाणिसे यहिदिपत्तयसंबंधेण ओकड्डक्कड्डगाए कम्मस्स अवहारकालो थोवो । अधापवत्तसंकमेण कम्मस्स अवहारो असंखेज्जगुणो त्ति भणिहिदि । तदो सिद्धमेदस्सासंखेज्जगुणतं । जोगगुणगारो असंखेज्जगुणो । एदस्स कारणं वुच्चदे । तं जहा-वेदगे त्ति अणियोगदारे कोहसंजलणपदेसग्गस जहण्णबंधसंकम-उदय-उदीरण-संतकम्माणि अस्सियूणप्पाबहुअं भणिहिदि । तं कथं ? कोहसंजलण ६५६५. क्योंकि हास्य और रतिका स्तिबुकसंक्रमणसे जो द्रव्य प्राप्त होता है उसके साथ अरति और शोकके उदयको प्राप्त हुए एक निषेकका यहाँ पर ग्रहण किया गया है । शंका-कितना विशेष अधिक है ? समाधान हास्य और रतिका स्तिवुकसंक्रमणसे जो द्रव्य प्राप्त होता है उसमेंसे. अन्तर्मुहूर्तप्रमाण गोपुच्छविशेषोंके कम कर देनेपर जो शेष रहे उतना विशेष अधिक है। ६५६६. अब इस स्थान पर जो सभी अर्थाधिकारोंमें साधारण है ऐसे अल्पबहुत्वदण्डकको मध्यदीपकभावसे दिखलाते हैं। यथा-सर्वसंक्रमणभागहार सबसे थोड़ा है, क्योंकि उसका प्रमाण एक है। इससे गुणसंक्रमभागहार असंख्यातगुणा है, क्योंकि यह पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इससे अपकर्षण-उत्कर्षणभागहार असंख्यातगुणा है। यद्यपि यह भी पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है तो भी पूर्वोक्त भागहारसे यह असंख्यातगुणा है ऐसा गुरुका उपदेश है। इससे अधःप्रवृत्तसंक्रमभागहार असंख्यातगुणा है। इसके असंख्यातगुणे होनेके कारणका निर्देश सूत्रमें ही किया है। शंका-सो कैसे ? समाधान-आगे स्थित्यन्तिक अधिकारमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अधःनिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यके सम्बन्धसे अपकर्षण-उत्कर्षणसे प्राप्त हुए कर्मका अवहारकाल थोड़ा और अधःप्रवृत्त संक्रमसे प्राप्त हुए कर्मका अवहारकाल असंख्यातगुणा है ऐसा कहेंगे, इसलिये अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे अधःप्रवृत्तभागहार असंख्यातगुणा है यह सिद्ध होता है। अधःप्रवृत्तसंक्रमभागहारके प्रमाणसे योगगुणकार असंख्यातगुणा है। अब इसका कारण कहते हैं। यथा-वेदक नामके अनुयोगद्वारमें क्रोध संज्वलनकर्मका जघन्य बन्ध, जघन्य संक्रम, जघन्य उदय, जघन्य उदीरणा और जघन्य सत्कर्म इनकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहेंगे। यथा-'क्रोधसंज्वलनकी जघन्य प्रदेशो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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