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________________ ३४२ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ पबद्धेसु गलिदेसु णवंसयवेदस्स फलाभावो त्ति आसंकणिज्जं, तेसिमगालणे बज्झमाणवेदिज्ज माणणकुंसय वेदपयडीए उवरि परपय डिसंकमत्थिवुक्कसं कमदव्वस्स बहुतपसंगादो । तदो तप्परिहरणहमहवस्तव्यं तरणकुंसयवेदसंचयगालणह च तत्थ पवेसो पदोवजोगि ति सिद्धं । ५६४. अंतदीवयं चेवेदमुवसामय समयपवद्धणिग्गालणवयणं, तेण संजदासंजदादिसमयपबद्ध णिग्गालणड मेसो बहुसो गुणसे ढिणिज्जिराकालब्धंतरे सुहुमेईदिएस पवेसणिज्ज । एत्थ पुण सुत्तावयवे निरवयवपरूविदावयवभावत्थे एवं पदसंबंधो कायन्वो - तदो पच्छा एइंदिए गदो संतो ताव अच्छिदो जाव उवसामय समयपबद्धा गालिदा ति । त्तियकालं ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं, अण्णा उवसामयसमयपबद्धाणं णिग्गलणाणुत्रवत्तीदो । ९५६५ एवं कम्मं हदसमुत्पत्तियं काऊण तत्थतणसंचयगालणड तदो पुणो मणुस्से आगदो ति वृत्तं । तत्थागदस्स वावारविसेसप दुष्पायणढमाह - पुचकोडी देणं संजयमणुपा लियूण अंतोमुहुत्त सेसे मिच्छतं गदो। संजमगुणसेढिणिज्जराए तं मणुलभवं सहलं काऊण सव्वजहणतो मुहुत्त सेसे आए देव दिपाओगे मिच्छतं गदो शामकके समयप्रबद्धों के साथ ही गल जाते हैं, इसलिये इससे नपुंसकवेदको कोई लाभ नहीं है सो ऐसी आशंका करना भी ठीक नहीं है, क्योंकि उन कर्मपरमाणुओंके नहीं गलने पर बंधनेवाली नपुंसक वेद प्रकृति में परप्रकृतिसंक्रमण के द्वारा और उदयको प्राप्त हुई नपुंसकवेद प्रकृति में स्तिवुक संक्रमण के द्वारा बहुत द्रव्यका प्रसंग प्राप्त होता है । इसलिये दोषका परिहार करनेके लिये और आठ वर्षके भीतर नपुंसकवेदका जो संचय हुआ है उसे गजानेके लिये एकेन्द्रियों में प्रवेश कराना प्रकृतमें उपयोगी है यह सिद्ध हुआ । $५६४ सूत्र में 'उवसामयसमयपबद्धा सिग्गलिदा' यह जो वचन दिया है वह अन्तदीपक है, इसलिये इससे यह ज्ञात होता है कि संयतासंयत आदिके समयप्रबद्धोंको गलाने के लिये भी इस जीवको बहुत बार गुणश्रेणिनिर्जरा कालके भीतर सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें प्रवेश कराना चाहिये | किन्तु यहाँ पर सूत्रके इस हिस्से के सब अवयवोंका भावार्थं कहने पर पदोंका सम्बन्ध इस प्रकार करना चाहिये - इसके बाद उपशामक के समयप्रबद्ध गलने तक यह जीव एकेन्द्रियों में रहा । वहाँ कितने काललक रहा यह बतलाने के लिए 'पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक रहा' यह कहा है । अन्यथा उपशामकके समयप्रबद्ध नहीं गल सकते हैं । $ ५६५ इस प्रकार कर्मको हतसमुत्पत्तिक करके एकेन्द्रियों में हुए संचयको गलानेके लिये 'तो पुणो मस्से गदो' यह सूत्रवचन कहा है। फिर मनुष्यों में आकर जो व्यापार विशेष होता है उसका कथन करने के लिये 'पुच्वकोडी देणं संजम मणुपा लियूग अंतोमुहुत्त सेसे मिच्छत्तं गदो' सूत्र वचन कहा है । संयमगुणश्रेणिनिर्जराके द्वारा उस मनुष्य भवको सफल करके जब सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहता है तब देवगतिके योग्य आयुका बन्ध करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ यह उक्त कथनका तात्पर्य है । १. ता० प्रतौ 'फलाभावादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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