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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ खविदकम्मसियलक्खणेण भमिदजीवो पुवकोडिसंजमगुणसेढिणिज्जरं करिय अंतोमुहुत्तावसेसे जीविदव्वए ति उवसमसेढिमारूढो अंतरकिरियापरिसमत्तीए गालिदसमयूणावलिओ कालगदो वेमाणिओ देवो जादो । सो च देवेसुप्पण्णपढमसमयम्मि पुरिसवेदमोकड्डियूणुदयादिणिक्खेवं करेइ, उदयाभावेण ओकड्डिजमाणणqसयवेदादिपयडीणमुदयावलियबाहिरे णिक्खेवं करेइ । एवमुदयावलियबाहिरे गोवुच्छायारेण णिसित्तणqसयवेदस्स जाधे विदियसमयदेवस्स एयगोवुच्छमेत्तमुदयावलियब्भंतरं पविसइ ताधे तत्थ णqसयवेदस्स प्रोकड्डणादितिण्हं पि जहण्णझीणहिदियं होइ। पुबिल्लजहण्णसामित्तविसईकयसमयूणावलियमेतणिसेएहिंतो एदस्स एयणिसेयमेत्तस्स थोवयरत्तदंसणादो ति ? णेदं घडदे, पूविल्लजहण्णदव्वादो एदस्स असंखेजगुणतुवलंभादो । तं जहा-इमस्स देवस्स संखेज्जसागरोवमपमाणाउहिदिमेत्तो सम्मत्तकालो अज्ज वि अत्थि। संपहि एत्तियमेत्तणिसेए गालिय अपच्छिमे मणुस्सभवे अवहिदो पुविल्लजहण्णदव्यसामित्रो। एदस्स पुण असंखेजगुणहाणिमेत्तगोवुच्छाओ णाज कि गलंति, तेण समयूणावलियमेत्तणिसेयदव्वादो एदमेयहिदिदव्वमसंखेज्जगुणं होइ, संखेजसागरोवमभंतरणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णभत्थरासीए समयूणाबलिओवट्टिदाए गुणगारसरूवेण दसणादो। तम्हा सुत्तुत्तमेव
आया हुआ यही जीव एक पूर्वकोटि काल तक संयमसम्बन्धी गुणश्रेणिकी निर्जरा करके जब जीवनमें अन्तर्मुहूर्त शेष रहा तब उपशमश्रेणि पर चढ़ा और अन्तर क्रियाको समाप्त करके तथा नपुसंकवेदकी एक समय कम एक आवलिप्रमाण प्रथम स्थितिको गलाकर मरा और वैमानिक देव हो गया। और वह देवोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें पुरुषवेदका अपकर्षण करके उसका उदय समयसे लेकर निक्षेप करता है तथा उदय न होनेसे अपकर्षणको प्राप्त हुई नपुंसकवेद आदि प्रकृतियोंका उदयावलिके बाहर निक्षेप करता है। इस प्रकार उदयावलिके बाहर गोपुच्छाके
आकाररूपसे जो नपुंसकवेदका द्रव्य निक्षिप्त होता है उसमेंसे जब द्वितीय समयवर्ती देवके एक गोपुच्छाप्रमाण द्रव्य उदयावलिके भीतर प्रवेश करता है तब वहाँ अपकर्षणादि तीनोंकी अपेक्षा नपुंसकवेदका जघन्य मीनस्थितिक द्रव्य प्राप्त होता है। इस प्रकार पूर्वोक्त जघन्य स्वामित्वके विषयभूत एक समय कम एक आवलिप्रमाण निषेकोंसे यह एक निषेकप्रमाण द्रव्य अल्प देखा जाता है ?
समाधान-यह कहना घटित नहीं होता, क्योंकि पूर्वोक्त जघन्य द्रव्यसे यह द्रव्य असंख्यातगुणा पाया जाता है। खुलासा इस प्रकार है-इस देवके संख्यात सागर आयुप्रमाण सम्यक्त्व काल अभी भी शेष है। अब इतने निषेकोंको गलाकर अन्तिम मनुष्यभवमें उत्पन्न होने पर पूर्वोक्त जघन्य द्रव्यका स्वामी होता है। परन्तु इस द्रव्यकी असंख्यात गुणहानिप्रमाण गोपुच्छाएँ अभी भी गली नहीं हैं, इसलिये एक समय कम एक आवलिप्रमाण निषेकोंके द्रव्यसे यह एक स्थितिगत द्रव्य असंख्यातगुणा होता है, क्योंकि यहाँ संख्यात सागरके भीतर नाना गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिको एक समय कम एक आवलिसे भाजित करने पर जो लब्ध आता है उतना गुणकार देखा जाता है। इसलिये सूत्रमें कहा हुआ ही स्वामित्व
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