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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५
* सयवेदस्स जहण्णयमोकणादितियहं पि भीडिदियं कस्स ? ६५५७. सुगमं ।
* अभवसिद्धियपाओग्गेण जहण्णएण कम्मेण तिपलिदोवमिएसु उवण्णो । तदो तोमुहुत्त से से सम्मत्तं लद्ध, वेछावद्विसागरोवमाणि सम्मत्तमणुपालिद, संजमासंजमं संजमं च बहुसो गदो । चत्तारि वारे कसाए उवसामित्ता अपच्छिमे भवे पुव्वकोडि आउओ मस्सो जादो । तदो देसूणपुव्व कोडिसं जममगुपालियूण अंतोमुहुत्त सेसे परिणामपचएण असंजमं दो । तावजो जाव गुणसेढी सिग्गलिदा ति । तदो संजमं पडिवज्जियूए तोमुहुत्ते कम्मrखयं काहिदि त्ति तस्स पढमसमयसंजमं पडिवण्णस्स जहणयं तिन्हं पिझीएडिदियं ।
१५५८. एदस्स सामित्तमुत्तस्स अत्थविवरणं कस्सामो । तं जहा जो जीवो विधिसे आकर और दो छयासठ सागर काल तक सम्यक्त्वके साथ रहकर मिध्यात्वको प्राप्त हुआ है पर यह स्वामित्व मिध्यात्व को प्राप्त होनेके प्रथम समय में न देकर एक आवलिके अन्तिम समयमें देना चाहिये, क्योंकि तब उदयमें अनन्तानुबन्धीके सबसे कम कर्म परमाणु पाये जाते हैं । इस पर किसी शंकाकारका कहना है कि स्थिति के अनुसार उत्तरोत्तर एक एक चयकी हानि होती जाती है, अतः उदद्यावलिके बाहरके निषेकके उदयमें प्राप्त होने पर और भी कम द्रव्य प्राप्त होगा, इसलिये यह जघन्य स्वामित्व उदयावलिकी अन्तिम स्थितिमें न देकर उदद्यावलिके बाहरकी स्थिति में देना चाहिये । पर यह शंका ठीक नहीं है, क्योंकि मिध्यात्वमें अनन्तानुबन्धीका बन्ध होता है, इसलिये इसमें अन्य सजातीय प्रकृतियोंका संक्रमण होकर उदयावलिके बाहरका द्रव्य बढ़ जाता है, इसलिये वहाँ जघन्य स्वामित्व नहीं दिया जा सकता है ।
* नपुंसकवेदके अपकर्षणादि तीनों की अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य कर्मपरमाणुओं का स्वामी कौन है ?
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$ ५५७. यह सूत्र सुगम है ।
* कोई एक जीव अभव्योंके योग्य जघन्य सत्कर्मके साथ तीन पल्योपमकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ | फिर अन्तर्मुहूर्त शेष रह जाने पर सम्यक्त्वको प्राप्त करके दो छयासठ सागर कालतक सम्यक्त्वका पालन किया। फिर बहुत बार संयमासंयम और संयमको प्राप्त हुआ। फिर चार बार कषायोंका उपशम करके अन्तिम भवमें एक पूर्व कोटिकी आयुवाला मनुष्य हुआ । फिर कुछ कम एक पूर्व कोटि काल तक संयम का पालन करके जब अन्तर्मुहूर्त शेष रहा तब परिणामवश असंयमको प्राप्त हुआ और गुणश्रेणि गलने तक असंयम के साथ रहा । फिर संयमको प्राप्त होकर जो अन्तर्मुहूर्त में कर्मक्षय करेगा वह प्रथम समयवर्ती संयमी जीव तीनों की अपेक्षा झीन स्थितिवाले जघन्य कर्म परमाणुओंका स्वामी है ।
५५८. अब इस स्वामित्व सूत्रके अर्थका खुलासा करते हैं । वह इस प्रकार है - जो जीव
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