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जयधवलासहिदें कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ पढमसम्मत्तमुप्पाइय उवसमसम्मत्तद्धं वोलाविय अधापवत्त-अपुव्वकरणाणि करिय अपुवकरणचरिमसमयादो से काले गहिदसंजमासंजमो एयंताणुवढा वडिपढमसमयप्पहुडि जाव तिस्से चरिमसमो ति ताव पडिसमयमणंतगुणाए संजमासंजमविसोहीए विसुज्झतो अंतोमुदुत्तमेत्तकालं सव्वकम्माणं समयं पडि असंखेजगुणं दव्वमोड्डिय उदयावलियबाहिरे अंतोमुहुत्तायाममवहिदगुणसेढिणिक्खेवं काऊण पुणो अधापवत्तसंजदासंजदविसोहीए वि पदिदो संतो अंतोमुहुत्त कालं चदुहि वडि-हाणीहि गुणसेढिं काऊण पुणो वि ताणि चेव दो करणाणि करिय गहिदसंजमपढमसमयप्पहुडि मिच्छत्तपदेसग्गमसंखेज्जगुणाए सेढीए प्रोकड्डिय उदयावलियबाहिरहिदिमादि काण अंतोमुहत्तमेत्तहिदी संजदासंजदगुणसेदिणिक्खेवादो संखेज्जगुणहीणासु अंतोमुहुत्तमेत्त कालमवहिदगुणसेढिणिक्खेवमणंतगुणाए संजमविसोहीए करेमाणो संजदासंजदएयंताणुबडिचरिमसमयकदगुणसेढिणिक्खेवस्स संखेज्जे भागे गंतूण संखेजदिभागमेत्ते सेसे तदेयं ताणुवड्डिचरिमसमयकदगुणसेढिसीसएण सरिसं सगएयंताणुचड्डिचरिमसमयगुणसे ढिसीसयं णिक्विविय एवं दो वि गुणसेढिसीसयाणि एक्कदो काऊण पुणो अधापवत्तसंजदभावेण परिणमिय दोण्हमेदेसिमहिकयगुणसे ढिसीसयाणमुवरि
किया। अनन्तर वह अधःप्रवृत्तकरण और अपूर्वकरणको करके अपूर्वकरणके अन्तिम समयसे अनन्तर समयमें संयमासंयमको प्राप्त हुआ। यहाँ इसके सर्वप्रथम एकान्तानुवृद्धिका प्रारम्भ होता है, इसलिये उसने एकान्तानुवृद्धिके प्रारम्भ होनेके प्रथम समयसे लेकर उसके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक प्रत्येक समयमें अनन्तगुणी संयमासंयमविशुद्धिसे विशुद्ध होकर अन्तर्मुहूर्त कालतक सब कर्मों के प्रत्येक समयमें उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे द्रव्यका अपकर्षण करके उसे उदयावलिके बाहर अन्तर्मुहूर्त आयामबाले अवस्थित गुणश्रेणिरूपसे निक्षिप्त किया । फिर अधःप्रवृत्त संयतासंयत विशुद्धिसे भी गिरता हुआ अन्तर्मुहूर्त कालतक चार वृद्धि और चार हानियोंके द्वारा गुणश्रेणि की। इसके बाद फिर भी उन दो करणोंको करके संयमको प्राप्त हुआ। और इस प्रकार संयमको प्राप्त करके उसके प्रथम समयसे लेकर मिथ्यात्वके कर्मपरमाणुओंको असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे अपकर्पित करके उदयावलिके बाहरकी स्थितिसे लेकर संयतासंयतके गुणश्रेणिनिक्षेपसे संख्यातगुणी हीन अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितियों में अनन्तगुणी संयमसम्बन्धी विशुद्धिके द्वारा अन्तर्मुहूर्तकाल तक अवस्थित गुणश्रेणिका निक्षेप करता है। यहाँ पर संयतासंयतके एकान्तानुवृद्धिरूप परिणामोंके अन्तिम समयमें किये गये गुणश्रेणिनिक्षेपके संख्यात बहुभागको बिताकर
और संख्यातवें भागकालके शेष रहने पर जो संयतासंयतके एकान्तानुवृद्धिरूप परिणामोंके अन्तिम समयमें गुणश्रेणिशीर्षका निक्षेप किया गया है सो उसीके समान संयत भी अपने एकान्तानुवृद्धिरूप परिणामोंके अन्तिम समयमें गुणश्रेणिशीर्षका निक्षेप करे। और इस प्रकार दोनों ही गुणश्रेणिशीर्षोंको एक करके फिर अधःप्रवृत्तसंयतभावको प्राप्त हो जाय । और इस
१. वड्ढावड्डी एवं भणिदे तासु चेव संजमासंजमसंजमलद्धीसु अलद्धपुव्वासु पडिलद्धासु तल्लाभपढमसमयप्पहुडि अंतोमुहुत्तकालब्भतरे पडिसमयमणंतगुणाए सेटीए परिणामवड्डी गहेयव्बा; उवरुवरि परिणामवड्डीए वडावड्डीववएसालवणादो ।'-जयध० पु. का० ६३१६ ।
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