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________________ २६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ® एवं तिसमयाहियाए चदुसमयाहियाए जाव आवाधाए आवलि. यूणाए एवदिमादो त्ति। ४४७. एत्थ उदयावलियाए इदि अणुवट्टदे । तेणेवं संबंधो काययो, जहा समयाहियाए दुसमयाहियाए च उदयावलियाए णिरंभणं काऊण एदे वियप्पा परूविदा, एवं तिसमयाहियाए चउसमयाहियाए उदयावलियाए इच्चादिहिदीणं पूध पुध णिरंभणं काऊण पुव्वुत्तासेसवियप्पा वत्तव्वा जाव आबाधाए प्रावलियूणाए जाव चरिमहिदी एवदिमादो त्ति । गवरि संतकम्ममस्सियूण अवत्थुवियप्पा हिदि पडि रूवाहियकमेण झीणहिदिवियप्पा च रूवणकमेण णेदव्वा । गवकबंधमस्सियूण पत्थि णाणत्तं । एदासिं च द्विदीणमइच्छावणा रूवूणादिकमेणाणवहिदा दहव्वा । आवाहाचरिमसमयादो उवरिमाणंतरहिदीए सव्वासि पि एदासिमझीणहिदियस्स पदेसग्गस्स उक्कड्डणाए णिक्खेवुवलंभादो। ण एस कमो उपरिमासु हिदीसु, तत्थ आवलियमेत्तीए अइच्छावणा [प] अवहिदसरूवेणुवलंभादो। एदस्स च विसेसस्स अस्थि तपरूवणहमेत्य आवलियूणाबाहाचरिमहिदीए सुत्तयारेण णिसेयपरूवणाविसओ को। * इसी प्रकार तीन समय अधिक और चार समय अधिक उदयावलिसे लेकर एक आवलि कम आबाधा काल तक की पृथक पृथक स्थितिमें पूर्वोक्त सब विकल्प होते हैं। १४४७. इस सूत्रमें 'उदयावलियाए' इस पदकी अनुवृत्ति होती है। उससे इस सूत्रका इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिए कि जिस प्रकार एक समय अधिक और दो समय अधिक उदयावलिको विवक्षित करके ये विकल्प कहे हैं उसी प्रकार तीन समय अधिक और चार समय अधिक उदयावलि आदि स्थितियोंको पृथक्-पृथक् विवक्षित करके पूर्वाक्त सब विकल्प कहने चाहिये। इस प्रकार यह क्रम एक आवलि कम आबाधा काल तक जाता है । यही अन्तिम स्थिति है जहाँ तक ये विकल्प प्राप्त होते हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि सत्कर्मकी अपेक्षा उत्तरोत्तर एक एक स्थितिके प्रति अवस्तु विकल्प एक एक बढ़ता जाता है और झीन स्थितिविकल्प एक एक कम होता जाता है। किन्तु नवकबन्धकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है। फिर भी इन स्थितियोंकी अतिस्थापना उत्तरोत्तर एक एक समय कम होती जानेके कारण वह अनवस्थित जाननी चाहिये; क्योंकि आबाधाके अन्तिम समयसे आगेकी अनन्तर स्थितिमें इन सभी स्थितियोंके अझीनस्थितिवाले कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण होकर निक्षेप देखा जाता है। परन्तु यह क्रम एक आवलिकम आबाधाकालसे आगेकी स्थितियोंमें नहीं बनता, क्योंकि वहाँ पर अवस्थितरूपसे एक आवलिप्रमाण अतिस्थापना पाई जाती है। इस विशेषके अस्तित्वका कथन करनेके लिए यहाँ पर एक आवलि कम आबाधाकी चरम स्थितिको सूत्रकारने निषेक प्ररूपणाका विषय किया है। विशेषार्थ-एक समय अधिक उदयावलि और दो समय अधिक उदयावलिको विवक्षित करके सामान्यसे जितने विकल्प प्राप्त हुए थे वे सबके सब विकल्प और कितनी स्थितियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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