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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ हाणि सबलोगे । एवं तिरिक्खा० । णवरि सैढिपदा मिच्छ० असंखे०गुणहाणि. च पत्थि ।
$ ३६३. आदेसेण णेरइय २८ पयः सव्वपदा लोग० असंखे भागे। एवं सव्वणेरइय० । सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस्स० सव्वपदा ति जासिं जाणि पदाणि संभवंति तासिं लोग० असंखे०भागे । एवं जाव अणाहारि ति ।
६३६४. पोसणाणुगमेण दुविहोणिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०अहक० असंखे०भागवडि-हाणि-अवहि केव० खेत्तं पोसिदं? सव्वलोगो। असंखे० गुणहाणि० लोग० असंखे०भागो। सम्म०-सम्मामि० असंखे०भागवडि-असंखे०गुणवड्डिहाणि-अवत्त० लोग० असंखे०भागो अडचोदस० । असंखे०भागहाणि० लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा । अणंताणु०४ मिच्छत्तभंगो। णवरि संखेज्जभागवडि-संखे०गुणवडि-असंखे०गुणवडि-हाणि--अवत्त० लोग० असंखे०भागो अहचो० देसूणा । चदुसंजल० संखे०गुणवडि० लोभं वज्ज असंखे० गुणहाणि० लोग० असंखे० भागो । सेसं मिच्छत्तभंगो । इत्थि-णवूस० असंखे०भागवडि-हाणि सव्वलोगो । असंखे०गुणअसंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। इसीप्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें श्रेणिसम्बन्धी पद और मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि नहीं है।
६ ३६३. आदेशसे नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पदवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए। सब पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और सब मनुष्योंमें सब पदोंमेंसे जिन प्रकृतियोंके जो पद सम्भव हैं उनका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इसप्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ। ६ ३६४. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और आठ कषायकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। इतनी विशेषता है कि संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और बसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार संज्वलनकी संख्यातगुणवृद्धिवाले और लोभसंज्वलनको छोड़कर शेषकी असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धि
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