________________
१८८
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५
हाणीओ च संभवति । एदाओ सव्वाणिओगद्दारेषु जहासंभवमणुमग्गियव्वाओ । एवं मणुसपज्ज० - मणुसिणीसु । णवरि पज्जत्त० इत्थवेद० हस्सभंगो | मणुसिणीसु पुरिस० स० असंखेज्जगुणहाणी णत्थि ।
$ ३५७. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० वारसक० - पुरिस०-भय-दुर्गुछा० अस्थि असंखे० भागवडि-हाणि-अवधि० । सम्म० सम्मामि० अस्थि असंखे • भागवड़ि-हाणिअसंखे० गुणवडि- हाणि-अवत० । अनंताणु०४ अस्थि असंखे० भागवडि-हाणि संखे ० भागवड्डि- संखे० गुणवड्डि-असंखे ०गुणवड्डि- हाणि अवद्वि० - अवत्त० । इत्थि - णवुं स ० - हस्सरइ- अरइ- सोगाणं अत्थि असंखे० भागवड्डि-हाणी० । एवं सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख० । मणुसा० ओघं । देवा भवणादि जाव उवरिवगेवज्जा त्ति णारयभंगो ।
-
$ ३५८. पंचि०तिरि० अपज्ज० मिच्छत्त-सोलसक० -भय-दुर्गुछ० अस्थि असंखे ०भागवडि- हाणि अव०ि । सम्म० सम्मामि० श्रत्थि असंखे० भागहाणि असंखे० गुणहाणि० । इत्थि० पुरिस० स० इस्स रइ अरइ-सोगाणं अस्थि असंखे ० भागवडिहाणि । एवं मणुस अपज्ज० । अणुद्दिसादि जाव सव्वद्या त्ति मिच्छ० सम्म ०. सम्मामि० अताणु ०४ - इत्थि - णवुंस० अत्थि असंखे० भागहाणि० । णत्ररि अताणु०४
भागहानि तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और तीन संज्वलनोंकी संख्यातगुणहानि और संख्यातभागहानि भी सम्भव हैं । इनका सब अनुयोगद्वारों में यथासम्भव अनुमार्गण करना चाहिए । इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्याप्तकोंमें स्त्री वेदका भङ्ग हास्य के समान है । तथा मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातगुहानि नहीं है ।
§ ३५७. आदेशसे नारकियोंमें मिध्यात्व, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्ति है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और वक्तव्यविभक्ति है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, संख्यात भागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि, अवस्थित और अवक्तव्यविभक्ति हैं । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, रति और शोककी असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानि है । इसीप्रकार सब नारकी और सब तिर्योंमें जानना चाहिए । मनुष्यों में ओघके समान भङ्ग है । सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर उपरिम प्रवेयक तकके देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है ।
$ ३५८. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों में मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्ति है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानि है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानि है। इसीप्रकार मनुष्य अपर्याप्तकों में जानना चाहिए। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यात भागहानि है । इतनी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org