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__जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ गदस्स तस्स उक्क० वड्डी । णवरि अरदि-सोगाणमधापवत्तचरिमसमए भय-दुगुंछोदएण विणा सोदए वट्टमाणस्स । उक० हाणी कस्स १ अण्णद० खवगस्स गुणिदकम्मंसियस्स अपच्छिमे हिदिखंडए दुचरिमसमए वट्टमाणगस्स तस्स उक्क. हाणी । एवं मणुसपज्ज० । णवरि इत्थिवेद० हाणी छण्णोकसायाणं व भाणियन्वा । एवं चेव मणुसिणीसु वि । णवरि पुरिस०-णवूस. छण्णोकसायाणं व भाणियव्वा । मणुसअपज्ज. पंचिंतिरिक्खअपज्जत्तभंगो।
३४६. देवगदीए देवेसु मिच्छत्त०-बारसक०-भय-दुगुंछा० उक्क० वड्डी कस्स ? अण्णद० खविदकम्मंसियस्स जो अंतोमुहुत्तेण कम्म खवेहदि त्ति विवरीयभावेण मिच्छतं गंतूण देवेसुववण्णो सव्वाहि पज्जतीहि पज्जत्तयदो उकस्सजोगमागदो उक्कस्सयं च संकिलेसं गदो तस्स उक्कस्सिया बड्डी। तस्सेव से काले उक्कस्सयमवहाणं । मिच्छत्तस्स उकस्सहाणी णारयभंगो। सेसाणं उक्क. हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मसिओ सम्मत्त-संजमासंजम-संजमगुणसेढोओ कादूण तदो मदो देवेसुववण्णो तस्स गुणसे ढिसीसगेसु उदयमागदेसु उक० हाणी। सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० वट्टी कस्स ? अण्णद० गुणिदकम्मंसियस्स सम्मत्तं पडिवण्णल्लयस्स सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणि गुणसंकमेण पूरेयण से काले विज्झादं पडिहिदि त्ति तस्स उक्क० वड्डी। सम्मत्त. गुणसंक्रमके साथ उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ उसके इनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। इतनी विशेषता है कि अरति और शोककी अधःप्रवृत्तके अन्तिम समयमें भय और जुगुप्साके उदयके बिना स्वोदयसे विद्यमान रहते हुए उत्कृष्ट वृद्धि होती है। इनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर क्षपक गुणितकर्माशिक जीव अन्तिम स्थितिकाण्डकके द्विचरम समयमें विद्यमान है उसके इनकी उत्कृष्ट हानि होती है। इसीप्रकार मनुष्यपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट हानि छह नोकषायोंके समान कहनी चाहिए। इसीप्रकार मनुष्यिनियोंमें भी कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेद और नपुंसकवेदका भङ्ग छह नोकषायोंके समान कहना चाहिए। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें पञ्चन्द्रियतियञ्च अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है।
६३४६. देवगतिमें देवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर क्षपितकौशिक जीव अन्तर्मुहूर्तके द्वारा कर्मका क्षय करेगा किन्तु विपरीत भावसे मिथ्यात्वमें जाकर देवोंमें उत्पन्न हो और सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो उत्कृष्ट योगको और उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानिका भङ्ग नारकियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकांशिक जीव सम्यक्त्व, संयमासंयम और संयमसम्बन्धी गुणश्रेणियोंको करके अनन्तर मरकर देवोंमें उत्पन्न हुआ उसके गुणश्रेणिशीर्षों के उदयमें आनेपर शेष कर्मों की उत्कृष्ट हानि होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकांशिक जीव सम्यक्त्वको प्राप्त हो सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको गुणसंक्रमके द्वारा पूरकर अनन्तर समयमें विध्यातको प्राप्त करेगा उसके इनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है? जो
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