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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेसविहन्तीए पदणिक्खेवे सामित्तं १७६ गुणिदकम्मं सिओ जो सम्मत्त-संजमा संजम -संजमगुणसेढीओ कोदूण मिच्छतं गदो अविणद्वासु गुणसेढी अपज्जत्तरसु उववण्णो तस्स गुणसेढिसीसएस उदयमागदेसु उक्क० हाणी | सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सिया हाणी तस्सेव । सत्तणोक० उक्क० वडि-हाणीण मिच्छत्तभंगो । ९ ३४८. मणुसगदीए मणुसेसु मिच्छत्तस्स उक्क० बड्डी कस्स ? अण्णदरो खविदकम्मं सिओ तो मुहुतेरा कम्मं खवेहिदि त्ति विवरीयं गंतूरण मिच्छतं गदो उकस्स जोगमुक्कस्ससं किलेसं च पडिवण्णो तस्स उक्क० बढी । तस्सेव से काले उक्कस्सयमवद्वाणं । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? अण्णदरो गुणिदकम्मंसिओ दंसणमोहraature अभुद्विदो जाधे तेण अपिच्छमं द्विदिखंडयं गुणसेढिसीसगस्स संखेज्जदिभागेण सह हदं ताधे तस्स उक्क० हाणी । सम्मत्त सम्मामि० उक्क० वड्डी कस्स १ अणद० गुणिदकम्मंसियस्स सव्वलहुं मणुसेसु आगदो जोणिणिक्खमणजम्मा जादो अवस्सिगो सम्मत - सम्मामिच्छताणि गुणसंकमेण असंखे० गुणाए सेटीए अंतोमुहुतं पूरेयुग से काले विज्झादं पडिहिदि ति तस्स उक्कस्सिया वडी | अथवा दंसणमोहक्खवगस्स कायव्वं । सम्मत्तस्स उक० हाणी कस्स १ अएणद० गुणिदकम्मं सिस्स चरिमसमय अक्खीणदंसणमोहणीयस्स । सम्मामिच्छत्तस्स एदेणेव दंसणमोहं खवेंतेण जाधे गुणसेढिसीसगेण सह सम्मामि० अपच्छिमद्विदिखंडयं उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक जीव सम्यक्त्व, संयमासंयम और संयम गुणश्रेणियों को प्राप्त होकर तथा मिथ्यात्वमें जाकर गुणश्रेणियोंके नष्ट हुए बिना अपर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ उसके गुणश्रेणिशीर्षों के उदयको प्राप्त होने पर उत्कृष्ट हानि होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि उसीके होती है। सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि और हानिका भङ्ग मिथ्यात्व के समान है । ६ ३४८. मनुष्यगतिमें मनुष्यों में मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर क्षपितकर्माशिक जीव अन्तर्मुहूर्त में कर्मों का क्षय करेगा किन्तु विपरीत जाकर मिथ्यात्वको प्राप्त हो उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट संक्लेशका अधिकारी हुआ उसके मिध्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक जीव दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेके लिए उद्यत हुआ। उसने जब अन्तिम स्थितिकाण्डकका गुणश्रेणिशीर्षके संख्यातवें भाग के साथ हनन किया तब उसके मिध्यात्वकी उत्कृष्ट हानि होती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्मांशिक जीव अतिशीघ्र मनुष्योंमें आकर और योनिनिष्क्रमण जन्मसे आठ वर्षका होकर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको गुणसंक्रमके द्वारा असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे अन्तर्मुहूर्ततक पूरकर अनन्तर समयमें विध्यातको प्राप्त होगा उसके उक्त कर्मों की उत्कृष्ट वृद्धि होती है । अथवा इनकी उत्कृष्ट वृद्धि दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके करनी चाहिए । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक जीव दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके अन्तिम समयमें अवस्थित है उसके सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि होती है । तथा यही दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाला जीव जब गुणश्रेणिशीर्षके साथ सम्यग्मिथ्यात्वके अन्तिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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