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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे फोसणं १५७ ३१८. आदेसैण णेरइ० मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंछ० भुज०-अप्प०अवहि० केव. पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो छचोदस० । अणंताणु०चउक्क० अवत्त० लोग० असंखे०भागो । सम्म०-सम्मामि० भुज०-अवत्त० खेतभंगो । अप्पदर० सत्तणोक. भुज०-अप्प. केव० फोसिदं ? लोगस्स असंखे०भागो छचोदस० । पुरिस० अवहि. केव० पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो । सम्म०-सम्मामि० अवहि० जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-मिथ्यात्व आदि उन्नीस प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पद एकेन्द्रियोंके भी होते हैं, इसलिए इनके उक्त पदवाले जीवोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका अवक्तव्य पद ऐसे जीवोंके होता है जो इनकी विसंयोजना करके पुनः इनसे संयुक्त होते हैं। ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन देवोंके विहार आदिकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण प्राप्त होनेसे तत्प्रमाण कहा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन इसीप्रकार घटित कर लेना चाहिए। इनकी अल्पतर विभक्तिवालोंका उक्त स्पर्शन तो बन ही जाता है। तथा यह विभक्ति एकेन्द्रियादिके भी सम्भव है, इसलिए सर्व लोक प्रमाण स्पर्शन भी बन जाता है । इन दोनों प्रकृतियोंकी अवस्थितविभक्ति सासादनसम्यग्दृष्टियोंके होती है, इसलिए इस अपेक्षासे इनके अवस्थित पदका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग, वसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। छह नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्ति एकेन्द्रियादि जीवोंके भी होती है, इसलिए इनके उक्त पदवाले जीवोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है । तथा इनकी अवस्थितविभक्ति उपशमश्रेणिमें होती है, इसलिए इनके इस पदवाले जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। पुरुषवेदके भुजगार और अल्पतर पदवाले जीवोंका स्पर्शन तो छह नोकषायोंके ही समान है, इसलिए इसका भङ्ग छह नोकषायोंके समान जानने की सूचना की है। मात्र इसके अवस्थित पदके स्पर्शनमें अन्तर है। बात यह है कि पुरुषवेदका अवस्थित पद सम्यग्दृष्टि जीवोंके होता है, इसलिए इसके उक्त पदवाले जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। ६३१८. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें.भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इनकी अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने और सात नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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