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________________ १५५ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे खेत्तं ३१५. खेत्ताणुगमेण दुविहो णि०-ओघेण आदेसण य । ओघेण मिच्छ०सोलसक०-भय-दुगुंछा० तिण्णिपदा केवडि खेत्ते ? - सव्वलोगे। अणंताणु०चउक्क० अवत्त० के० खेत्ते ? लोग० असंखे० भागे। सम्म०-सम्मामि० भुज०-अप्प०-अवत्त०अवहि० के० खेत्ते ? लोग० असंखे०भागे। छण्णोक० भुज-अप्प० के० खेले ? सव्वलोगे । अवहि० लोग० असंखे०भागे । एवं पुरिस० । एवं तिरिक्खोघो । णवरि छण्णोक० अवडियं पत्थि। ३१६. आदेसेण णिरय० मिच्छ०-सोलसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछा० भुज०अप्प०-अवहि. अणंताणु चउक्क० अवत्त : केव० खे० १ लोगस्स असंखे०भागे । सम्म०-सम्मामि० सव्वपदा छण्णोक० भुज-अप्प० के० खेत्ते ? लोगस्स असंखे०भागे। एवं सव्वणेरइय-पंचिंदियतिरिक्खतिय-मणुसतिय-देवगइदेवा भवणादि जाव उपरिमगेवज्जा सि । णवरि मणुसतिए छण्णोक० अवडि• ओघं । पंचिं०तिरिक्खअपज्ज० मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुंछा० तिण्णि पदाणि सम्म०-सम्मामि० अप्प० सत्तणोक. भुज-अप्प. केव० ? लोग. असंखे०भागे। एवं मणुसअपज्ज० । ६३१५. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके तीन पदवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तव्य पदवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है । लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अल्पतर, अवक्तव्य और अवस्थित पदवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। छह नोकषायोंके भुजगार और अल्पतर पदवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र है। अवस्थित विभक्तिवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसीप्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा क्षेत्र जानना चाहिए। इसीप्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें छह नोकषायोंका अवस्थित पद नहीं है। विशेषार्थ—यहाँ जिन प्रकृतियोंके जो पद एकेन्द्रिय जीवोंके होते हैं उनका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण कहा है और शेषका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण। इसीप्रकार आगे भी अपने अपने क्षेत्रको जानकर घटित कर लेना चाहिए। ६३१६. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदवाले जीवोंका तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तव्य पदवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदवाले जीवोंका तथा छह नोकषायोंके भुजगार और अल्पतर पदवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसीप्रकार सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तियश्चत्रिक, मनुष्यत्रिक, देवगतिमें सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर उपरिमअवेयकतकरे देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकमें छह नोकषायोंके अवस्थित पदका क्षेत्र श्रोधके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके तीन पदवाले जीवोंका, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतर पदवाले जीवोंका तथा सात नोकषायोंके भुजगार और अल्पतर पवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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